देवबन्द (तौसिफ कुरैशी)। देश के सबसे पुराने सगठन जमीअत उलमा-ए-हिंद के चीफ़ हजरत मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हम एक जीवित कौम हैं और जीवित कोमें परिस्थितियों की दया पर नहीं जीती हैं। बल्कि, वे अपने कार्यों से स्थिति को बदल देते हैं। यह हमारी परीक्षा की कठिन घड़ी है। इस लिए हमें धैर्य, आशा और स्वतंत्रता को किसी भी समय नहीं छोड़ना चाहिए।
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साम्प्रदायिकता और धर्म के आधार पर नफरत पैदा करने के कारण देश में हालात बेहद निराशाजनक और खतरनाक हो गए हैं। लेकिन हमें निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आशाजनक बात यह है कि देश का बहुमत सांप्रदायिकता के खिलाफ है, हम एक जीवित कौम हैं और जीवित कोमें परिस्थितियों की दया पर नहीं जीती हैं। बल्कि, वे अपने कार्यों से स्थिति को बदल देते हैं। यह हमारी परीक्षा की कठिन घड़ी है।
इसलिए हमें धैर्य, आशा और स्वतंत्रता को किसी भी समय नहीं छोड़ना चाहिए, समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। इस प्रकार राष्ट्रों की परीक्षाएँ आती रहती हैं। मुसलमान दुनिया में ख़त्म होने के लिए नहीं आया है,मुसलमान चौदह सौ वर्षों से इन परिस्थितियों में जीवित है और पुनरुत्थान के दिन तक जीवित रहेगा। मुसलमान अपना हौसला बुलंद रखें, इस चिराग को कोई नहीं बुझा सकता,जब तक दुनिया रहेगी अल्लाह-अल्लाह कहने वाले रहेंगे, जिस दिन ये नहीं रहेंगे उस दिन ये दुनिया भी खत्म हो जाएगी। ये हमारी आस्था और विश्वास है।