उत्तर प्रदेश में नगर निगम की सभी 17 सीटों पर बीजेपी के मेयर पद के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। राज्य में बीजेपी का सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी से था। लेकिन समाजवादी पार्टी प्रत्याशियों का चयन करने और चुनावी रणनीति बनाने में नाकाम रही। शाहजहांपुर में पहली बार मेयर का चुनाव हुआ है, वहां सपा ने पूर्व मंत्री की बहू अर्चना वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया था। वह सपा प्रत्याशी घोषित होने के बाद पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो गई। बरेली में सपा प्रत्याशी ने नामांकन के पश्चात अपना नाम वापस ले लिया। रायबरेली में भी कुछ ऐसा ही हुआ यहां नगर पालिका सीट पर पार्टी में बगावत हो गई। सपा और रालोद का गठबंधन था लेकिन दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। जिस का समाजवादी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। सपा नगर निगम की 17 सीटों में से 8 पर AIMIM से भी पीछे रही। बसपा, आम आदमी पार्टी और मजलिस ने भी उसका खेल बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई। बसपा ने 11 मुस्लिमों को मेयर का टिकट दिया था। इससे मुस्लिम बहुल मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ जैसी सीटें भी बीजेपी के खाते में चली गईं।
स्थानीय निकाय चुनाव(nagar nikay chunav) में जीत के लिए योगी आदित्यनाथ (yogi adityanath) ने राज्य में पचास रैलियां कीं। वे केवल अयोध्या ही चार पांच बार गए। जबकि उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों ने भी वहां का दौरा किया। वहीं, अखिलेश यादव एक दर्जन रैलियां ही कर सके। जबकि मायावती अपने किले से बाहर ही नहीं निकलीं। इस का परीणाम यह हुआ कि 2017 में विपक्ष को मिली मेयर की दो सीटें मेरठ, अलीगढ़ भी छिन गयीं। नगर पालिका अध्यक्ष की 199 सीटों में से बीजेपी ने 88, समाजवादी पार्टी ने 36, बहुजन समाज पार्टी 16, कांग्रेस 5 और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 54 सीटों पर जीत हासिल की। नगर पंचायत के 544 पदों में से भाजपा 184, सपा 76, बीएसपी 36, कांग्रेस 13 आम आदमी पार्टी एक और 225 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। नगर निगम के 1420 वार्डों में से 1393 वार्ड पार्षदों के परिणाम आ चुके हैं। इन में से भाजपा 794, सपा 188, बहुजन समाज पार्टी 85, कांग्रेस ने 76 पर सफलता प्राप्त की है। नगर पालिका परिषद के कुल 5327 पदों में से 3937 के परिणाम कुछ इस प्रकार रहे। भाजपा 955, समाजवादी पार्टी 294, बहुजन समाज पार्टी 134, कांग्रेस 72 AIMIM 26 और आम आदमी पार्टी को 22 पदों पर कामयाबी प्राप्त हुई। नगर पंचायत सदस्यों के 7177 पदों में से 5364 की मिली जानकारी के अनुसार भाजपा 1079, समाजवादी पार्टी 349, बसपा 148, कांग्रेस 62 आम आदमी पार्टी 57 AIMIM 15 और रालोद ने 28 पर विजयी हुई है। नगर निगम पार्षद के पद पर 205 नगर पालिका अध्यक्ष पद पर 26 नगर पालिका सदस्य 2719, नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर 165 और सदस्य के पद पर 4165 निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं। मेयर की सभी सीटें पर भाजपा की जीत में ईवीएम की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुश्री मायावती ने ईवीएम को ले कर गंभीर सवाल उठाए हैं।
भाजपा ने पहली बार 37 नगर पंचायतों और तीन नगर पालिका में मुस्लिम उम्मीदवारों को अवसर दिया था । इन में से गोरखपुर नगर निगम से बीजेपी की पार्षद हकीकुन निशा चुनाव जीत गई वहीं अमेठी नगर पालिका के वार्ड पार्षद जैबा खातून को जीत मिली है। नगर पंचायत सिवालखास के वार्ड 5 से भाजपा प्रत्याशी शहजाद और वार्ड 3 से रूखसाना कामयाब हुई हैं। गोपामऊ हरदोई नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर वली मुहम्मद, चिल्लकाना सहारनपुर नगर पंचायत अध्यक्ष फूल बानो, सिरसी संभल नगर पंचायत अध्यक्ष कौसर अब्बास, धौरा टांडा बरेली नगर पंचायत अध्यक्ष नदीमुल हसन व भोजपुर मुरादाबाद नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर फर्खन्दा ज़बी ने जीत हासिल कर भाजपा का झंडा बुलंद किया है।
भाजपा ने सपा, बसपा को एक-दूसरे के खिलाफ लडा कर और बीजेपी विरोधी वोटों को आम आदमी पार्टी और AIMIM के द्वारा कटवा कर निकाय चुनाव जीतने की रणनीति अपनाई थी। जिसमें वह कुछ हद तक सफल हुई है। लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी ने सख्त टक्कर दे कर उस का खेल बिगाडा है। समाजवादी पार्टी ने यह चुनाव गंभीरता से नहीं लडा क्योंकि उस ने उत्तर प्रदेश की जनता के मुद्दे नहीं उठाए। अखिलेश यादव ने कर्नाटक की तरह महंगाई, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी की समस्या पर बात नहीं की। उनका चुनाव प्रचार आक्रामक नहीं रहा। बुर्के के बहाने मुस्लिम महिलाओं को वोट डालने से रोका गया, लेकिन अखिलेश यादव खामोश रहे। योगी ने यहां तक कह दिया कि कारसेवकों पर गोली चलाने वालों को वोट नहीं देना चाहिए, इसे भी उन्होंने मुद्दा नहीं बनाया। वे लोगों को 2021 में अयोध्या में हुए भूमि घोटाले की याद भी नहीं दिला सके। उन्होंने बीजेपी में मौजूद अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई और यूपी में गुजरातियों के सरकार की मद्द से बढ़ते कारोबार पर भी सवाल नहीं उठाया। ऐसा लग रहा था कि सपा यूपी में आधे-अधूरे मन से चुनाव लड़ रही है। उसने भाजपा के लिए मैदान छोड दिया है।
योगी आदित्यनाथ ने यह चुनाव मिशन 80 के लक्ष्य को सामने रखकर लड़ा है। वे चाहते हैं कि 2024 में मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में यदि बीजेपी को कुछ सीटों का नुकसान हो तो उत्तर प्रदेश से उस की भरपाई हो जाएं। ऐसा करके वे केंद्र में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार बन सकते हैं। वास्तव में यह यूपी का पुराना रोग है, जो भी यहा मुख्यमंत्री होता है। यूपी के अधिकारी उसे प्रधानमंत्री बनने का सपना दिखाने लगते हैं। यूपी का सूचना विभाग मेयर की सभी सीटों पर जीत को प्रचंड जीत बता कर योगी के योगदान का महिमामंडन कर उन्हें अगले प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर सकता है। मायावती के समय में सूचना विभाग का बजट 100 करोड़ रुपये था। जिसमें कर्मचारियों का वेतन और अन्य खर्चे भी शामिल थे। यह धीरे-धीरे बढ़कर दो हजार करोड़ रुपए हो गया है। सवाल यह है कि क्या यूपी के अफसर ही योगी को अगला प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करना चाहते हैं या आरएसएस भी। याद कीजिए कोरोना के बाद योगी को हटाने की चर्चा शुरू हुई थी तो आरएसएस न केवल उन्हें बचाया था बल्कि उनके नेतृत्व में ही यूपी विधानसभा का चुनाव भी लड़ा गया था।
योगी आदित्यनाथ आरएसएस से ताल्लुक न रखते हुए भी उसके एजेंडे पर काम कर रहे हैं। उन्हें भगवाधारी होने के साथ एक कट्टर हिंदू नेता के रूप में पेश किया जा रहा है। हर चुनाव में योगी को स्टार प्रचारक की लिस्ट में रखा जाता है। उन्हें जगहों के नाम बदलने, वोटों का ध्रुवीकरण करने, सांप्रदायिक द्वेषपूर्ण बयान देने वाले नेता के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन मुश्किल यह है कि यदि उन्हें प्रधानमंत्री बनना है तो अमित शाह से मुकाबला करना होगा। योगी आदित्यनाथ अमित शाह से अधिक धन प्रचार पर खर्च कर सकते हैं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक विज्ञापन में प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्री की तस्वीर प्रकाशित होती है योगी जी इस का लाभ उठा रहे हैं। आने वाले समय में वह अयोध्या मे दीपावली पर जलाए गए दीप और राम मंदिर के निर्माण का श्रेय भी स्वयं ले सकते हैं। लेकिन आम जन जानता है कि बीजेपी सदस्य के खिलाफ अपराध, भ्रष्टाचार के चाहे जितने सबूत हों, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। यदि कोई दागी बीजेपी का दामन थाम लेता है तो उसके सारे दाग धुल जाते हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी 255 सीटें जीतने में हांफ गयी थी। स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे मोटे तौर पर संकेत दे रहे हैं कि मिशन 80 कहीं 2024 में भाजपा को 62 सीटों से 50 पर न ले आए।
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