आखिर क्यों प्रसिद्ध है आगरा का पेठा

पेठा को कुछ सालों पहले तक लोग इस औषधि के रूप में भी इस्तेमाल करते थे। ऐसा माना जाता है कि 1940 से पूर्व पेठे को एक आयुर्वेदिक औषधि की तरह बनाया जाता था।

New Delhi , (Shah Times )।आगरा का ताजमहल के साथ साथ यहां का पेठा भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में मशहूर है। जब भी कोई यहां ताजमहल देखने आता है तो साथ ही आगरा के पेठा का स्वाद भी लेता है। अगर किसी ने एक बार यहां की मिठाई खा ली तो वह इसका टेस्ट कभी नही भूलता

मुगलकाल से है रिश्ता

यह पेठा आज या कल से ही नहीं बल्कि मुगलों के समय से प्रसिद्ध है।
कहा जाता है कि शाहजहां के समय से पेठा बनने का सिलसिला शुरू हो गया था। जब आगरा में शाहजहां का राज था, तब ताजमहल की तरह शुद्ध और सफेद रंग की अनोखी मिठाई बनाने का आदेश दिया था। जिसके बाद शाही रसोइयों ने मेहनत की और पेठा नामक सफेद और शुद्ध मिठाई को बनाया था।

ये भी है पेठे की कहानी

लोगों का तो ये भी मानना है ताजमहल बनने से पहले ही पेठे की मिठाई बनाई जा चुकी थी। लोग कहते हैं कि इस खास मिठाई को ताजमहल का निर्माण करने वाले श्रमिकों को खुश करने और खिलाने के लिए बनाया गया था। काम करने के बाद थक चुके मजदूर जब खाना खाना पसंद नहीं करते थे, तो उन्हे खुश करने के लिए मुगल रसोई में इस पेठे की स्वादिष्ट मिठाई बनाई गई थी।

एक मत नहीं है इतिहासकार

पेठे की उत्पति को लेकर इतिहासकारों का एकमत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पेठा मुगलों की देन नहीं है। दरअसल, मुगल दूध और मावा से भरपूर मिठाइयों को बनाना और खाना पसंद करते थे। जबकि पेठे को बनाने में कद्दू व लौकी का इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं, पेठे से मिलते-जुलते मीठे व्यंजन मुगलों के भारत पर राज करने से पहले भी अस्तित्व में थे। इसलिए पेठे को लेकर सभी की अलग अलग बाते हैं।

दवाई के रूप में भी करते हैं इस्तेमाल

जिस पेठे को आज हम एक मिठाई के रूप में खाते हैं। कुछ सालों पहले तक लोग इस औषधि के रूप में भी इस्तेमाल करते थे। ऐसा माना जाता है कि 1940 से पूर्व पेठे को एक आयुर्वेदिक औषधि की तरह बनाया जाता था। इतना ही नहीं, ब्लड से लेकर जिगर की बीमारियों में इसका सेवन किया जाता था। उस समय इसमें मीठे का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे इसे स्वाद में परिवर्तन आने लगा और लोग चीनी के साथ-साथ इसमें सुगंध का इस्तेमाल करके रसीला पेठा बड़े ही चाव से बनाने और खाने लगे। वर्तमान में, लोग इसे 50 से अधिक तरह से बनाना व खाना पसंद करते हैं।

आपकों बता दें कि ताज महल का निर्माण साल 1653 में खत्म हो गया था। तब पेठे के कारीगरों ने इसे अपना व्यापार बना लिया और उसके बाद से ही पेठे की मिठास पूरे देश में फैल गई और इसे पूरे देश में बनाया और बेचा जाने लगा।

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