- महात्मा गांधी की हत्या के बाद अगर सांप्रदायिकता को कुचल दिया जाता तो देश बर्बाद होने से बच जाता: मौलाना अरशद मदनी
- कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान किया गया बजरंग दल पर बैन लगाने का अपना वादा पूरा करे कांग्रेस
मुंबई। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने समान नागरिक संहिता लागू करने की मोदी सरकार की कोशिशों को देश के नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता खत्म करने की साजिश का हिस्सा करार दिया है। जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर जोर देकर कहा है कि अगर महात्मा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस सांप्रदायिक ताकतों का सर कुचल देती तो देश बर्बाद होने से बचा जाता है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तीन दिवसीय बैठक के आखिरी दिन मुम्बई के आज़ाद मैदान में आयोजित आम अधिवेशन में देश के कोने-कोने से आए हुए लाखों लोगों से संबोधित करते हुए मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि सांप्रदायिक ताक़तों के हाथों अब न संविधान सुरक्षित है और न ही संवैधानिक संगठन। समान नागरिक संहिता लाकर नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीन लेने की साज़िश हो रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आड़ में हिंदू पुनर्जागरण को बढ़ावा देने का प्रयास शुरू हो गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद उसका कड़ा विरोध करती है और निदेशक मण्डल के अधिवेशन में इस पर प्रस्ताव भी पारित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि सच यह है कि डर और भय का माहौल पैदा करके पूरे देश को पुलिस स्टेट में बदल दिया गया है, लेकिन राष्ट्रीय एकता, धार्मिक समरस्ता और आपसी प्यार-मुहब्बत की सदियों पुरानी जो परंपराएं हैं, संप्रदायवादी अभी उन्हें समाप्त नहीं कर सके हैं।
मौलाना अरशद मदनी ने देश में मौजूदा संप्रदायिक हालात के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। सम्मेलन की शुरुआत में भी उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था आखरी दिन भी जोर देकर कहा कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे सांप्रदायिक ताकतों का हाथ था। अगर उसी समय सांप्रदायिकता को कुचल दिया जाता तो देश को बर्बाद होने से बचाया जा सकता था। उन्होंने स्पष्ट किया कि विभाजन के बाद देश भर में मुस्लिम विरोधी दंगे शुरू हुए तो उन्हें रोकने के लिए महात्मा गांधी उपवास रख रहे थे। संप्रदायवादियों यहां तक कि कांग्रेस में मौजूद कुछ बड़े नेताओं को यह बात अच्छी नहीं लगी और वो उनके खिलाफ हो गए और अंततः उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या वास्तव में देश की धर्मनिरपेक्षता की हत्या थी। मगर दुर्भाग्य से उस समय के कांग्रेस नेतृत्व को जो करना चाहीए था, उसने नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का नेतृत्व लगातर कांग्रेस के नेतृत्व से सांप्रदायिकता के इस जुनून को रोकने की मांग कर रहा था। मगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया। इससे सांप्रदायिकतावादियों का साहस बढ़ गया। उन्होंने कहा कि आज़ादी से पहले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महानुभावों ने कांग्रेसी नेताओं से यह लिखित वादा ले लिया था कि आज़ादी के बाद देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष होगा। अर्थात सरकार का कोई धर्म नहीं होगा। सभी अल्पसंख्यकों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता होगी।
उन्होंने आगे कहा कि जब देश विभाजित हुआ तो कांग्रेसी नेताओं का भी एक बड़ा वर्ग उन अन्य नेताओं की इस मांग में शामिल हो गया कि क्योंकि मुसलमानों के लिए नया देश बन चुका है इसलिए अब देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष न रखा जाए। इस अवसर पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद का नेतृत्व कांग्रेसी नेताओं का हाथ पकड़कर बैठ गया और कहा कि अगर देश विभाजित हुआ है तो उसके मसौवदे पर हमने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसलिए आपने हमसे जो वादा किया है उसे पूरा करें। इसलिए धर्मनिरपेक्ष संविधान बन गया। लेकिन सांप्रदायिकता की जड़ें अंदर ही अंदर गहरी होती गईं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के लगातार आग्रह के बाद भी इस पर नकेल नहीं कसी गई। जब कि उस समय केंद्र और सभी राज्यों में कांग्रेस का ही शासन था और वो चाहती तो इस पर कोई कड़ा क़ानून बना सकती थी मगर उसने जो लचकदार नीति अपनाई उसके नतीजे में संप्रदायवादी शक्तिशाली होते गए और फिर यही संप्रदायवादी एक दिन कांग्रेस के शासन को निगल गए।
इसी स्वर में मौलाना मदनी ने कहा कि कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस ने सांप्रदायिकता के खिलाफ जो कड़ा रुख अपनाया और जिस तरह बजरंग दल और इस जैसे अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया है, वो सराहनीय है, और अब समय आगया है कि कांग्रेस अपने चुनावी वादे को पूरा करे और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर जो आरक्षण मुसलमानों को दिया गया है उसे बहाल करे, उन्होंने यह भी कहा कि यह चुनाव पूरी तरह हिंदू-मुस्लिम दुश्मनी के आधार पर लड़ा गया मगर कर्नाटक की जनता ने उनके नफरत के इस एजंडे को पूरी तरह नकार दिया, यह चुनावी परिणाम बताता है कि देश के अधिकांश लोग आज भी नफरत की राजनीति को पसंद नहीं करते, और कांग्रेस के घोषणापत्र को सच मानते हैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सांप्रदायिकता के खिलाफ अब जो कड़ा रुख अपनाया है अगर उसने 75 साल पहले ऐसा ही रुख अपनाया होता तो वो सत्ता से बेदखल नहीं हुई होती और देश विनाश की कगार तक न पहुंचा होता, इन 75 वर्षों में सांप्रदायिकता ने अपनी जड़ें किस तरह अंदर तक मज़बूत करली हैं, इसको स्पष्ट करने के लिए मौलाना मदनी ने राहुल गांधी से अपनी एक मुलाक़ात का उल्लेख किया, उस समय कांग्रेस सत्ता में थी और पढ़े लिखे मुस्लिम युवकों की आतंकवाद के आरोप में धड़ाधड़ गिरफ्तारियां हो रही थीं, इस मुद्दे को लेकर जब वो राहुल गांधी से मिले तो उन्होंने उस समय के गृह राज्य मंत्री को आदेश दिया कि वो इस मामले को हल करें। उपरोक्त मंत्री ने मामले में गहरी रुचि ली और उसके समाधान का आश्वासन भी दिया मगर दो महीने बाद ही उस मंत्री को हटा दिया गया, और इस मामले की फाईल हमेशा के लिए बंद कर दी गई।