मणिपुर हिंसा की दूरगामी चेतावनी को समझें ?

मणिपुर विवाद (Manipur Dispute ) की बुनियादी हकीकत को अच्छे से समझे, तो सामने एक डरावनी तस्वीर उभरती है। ऐसी ‘तस्वीर और ऐसा विवाद’ उभरता दिखता है जो संकेत देकर आने वाले वक्त के लिए सचेत करता है कि ये हिंसा आज वहां है, तो कल और भी कहीं उठ सकी हैं ऐसी चिंगारी? हो सकता है उन जगहों के लिए ये घटना संबल भी दे। अपने-अपने हिस्से की हिस्सेदारियों और मुकम्मल हकों की मांगों को लेकर आदिवासी समुदाय जैसे छत्तीसगढ़ व अन्य उन राज्यों में दशकों से आवाजें उठा रहे हैं जहां इनकी संख्या बहुतायत रूप में है। कमोबेश, ठीक वैसे ही मणिपुर में ये विवाद मौजूदा समय में उपजा हुआ है। केंद्र व राज्य की हुकूमत के साथ-साथ आमजन को भी मणिपुर घटना की हकीकत से वाकिफ होना अति जरूरी है। घटना की मूल वजह की जहां तक बात है। तो, समझने में हमें ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। विस्तार से अगर समझें तो मणिपुर के समूचे क्षेत्रफल का तकरीबन एक तिहाई भाग पहाड़ी क्षेत्र से घिरा है, जो प्राकृतिक संपदाओं से पूरी तरह लबरेज है। जहां, तरफ-तरह के फल, जड़ी-बूटियां, डृईफूट से लेकर कमाई करने और पेट पालने के साधन व्याप्त हैं।

बहरहाल, घटना हक, हकदारी और कब्जेदारी को लेकर हुई है। मणिपुर में, मुख्यतः तीन ही जातियों का बर्चस्व रहा है जिनमें दो समुदायों में आपसी रजामंदी रहती है थोड़ी-बहुत। और तीसरे समुदाय का रवैया ‘ऐकला चलो’ यानी पूरी तरह से अलहदा रहा है। तीनों जातियों में अव्वल, मैतई, दूसरा नागा और तीसरा कुकी समुदाय है। इनमें राज्य सरकार द्वारा नागा और कुकी समुदाय को आदिवासी का दर्जा प्राप्त है। वैसे हैं ईसाई? वहीं, मैतई जाति को हुकूमत ने शुरू से गैर-आदिवासी माना। लेकिन अगड़ी जाति से बाहर रखा। मैतई हिंदू धर्म से वास्ता रखते हैं। उनके रीति-विराज उत्तर भारत जैसे होते हैं। इनकी आपसी लड़ाई पहले भी कई मर्तबा खूनी संर्घष में तब्दील हो चुकी है। पर, इस बार कुछ ज्यादा ही बढ़ गई। मैतई लोग इस दफे सरकार से भी नाखुश दिखते हैं। उनका आरोप है कि चुनाव के वक्त उनकी समस्या को सुलझाने का वादा नेताओं ने किया था। जीतने और सरकार बनाने के बाद भी वादा पूरा नहीं किया गया। राज्य का करीब नब्बे प्रतिशत भाग पहाड़ी क्षेत्र से घिरा हुआ है। मैतई समुदाय के लोग अनुसूचित जाति होते हुए भी पहाड़ी इलाकों में अपना घर नहीं बना सकते है। ये मांग उनकी आज की नहीं है, बल्कि दशकों पुरानी है। समस्यर का हल निकला चाहिए, वरना कभी भी राज्य हिंसा की चपेट में फिर से आ सकता है। गनीमत इस बात की रही है कि समय रहते सरकार ने मोर्चा संभाल लिया। वरना, ये चिंगारी समूचे राज्य में भी फैल सकती थी।

रोजगार व काम धंधों के लिहाज से सिर्फ मणिपुर में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में स्थित ज्यादा अच्छी नहीं है। आलम प्रत्येक जगह ऐसा ही है। जहां, जो समुदाय दशकों से काबिज है, वो नहीं चाहता वहां किसी की दखलंदाजी हो। इसलिए मणिपुर जैसे मसले हिंदुस्तान के कईयों जगहों पर व्याप्त हैं। हिस्सेदारियों को लेकर तेलंगाना में कितना बड़ा मूवमेंट हुआ, जिसे सबने देखा। अलग राज्य तक बनाया गया। यही, मूवमेंट उत्तर प्रदेश में सन् 2000 में उतरांचल में हुआ, जो कटकर उत्तराखंड में तब्दील हुआ। मध्यप्रदेश और महाराष्टृ में बड़ी संख्या में रहने वाले बंजारे समुदाय के लोग भी अपनी मांगों को लेकर दशकों से उग्र हैं। काका कालेकर आयोग भी बनाया गया था। मसला आज तक नहीं सुलझा। दरअसल, ये ऐसा मुद्दे हैं जो बिना केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से नहीं सुलझ सकते हैं। ये बातें राज्य सरकारों के बस की तो कतई नहीं? अगर होती तो वह कब के सुलझा लेती। केंद्र सरकार को मणिपुर की स्थिति को ठीक से समझना चाहिए, बिना देर किए सुलझाना चाहिए। वरना, ऐसी चिंगारियों और भी भड़क सकती है। पूरे देशभर में जब लोग ऐसा करने लगेंगे, तब स्थिति को नियंत्रण में करना मुश्किल होगा।

मणिपुर विवाद (Manipur Dispute ) की मुख्य वजह एक ये भी है ?

मणिपुर कानून के मुताबिक सिर्फ आदिवासी लोग ही पहाड़ी इलाकों में रह सकते हैं। वो वहां अपना कारोबार, काम धंधे आदि कर सकते हैं। घर बना सकते हैं। जबकि, मैतई समुदाय लोग भी यही सब चाहते हैं। मैतई लोगों का एक आरोप ये भी है कि राज्य सरकारों मे नागा और कुकी जातियों के लोगों को आरक्षण भी दिया हुआ है जिससे उनके लोग सरकारी सेवाओं में भी हैं। मैतई समुदाय को लगता है उनके साथ खुलेआम भेदभाव किया जा रहा है। इसलिए वो केंद्र सरकार की तरफ देखते हैं। इस विवाद में अगर केंद्र सरकार की अ-प्रत्यक्ष भूमिका को देखें, तो उनका समर्थन इस जाति के साथ है जरूर? पर अभी तक खुलकर कोई तर्क नहीं दिया। गृहमंत्री अमित शाह इस मसले को लेकर मुख्यमंत्री बीरेंद्र सिंह से लगातार संपर्क में हैं। स्थित पर नजर भी बनाए हुए, लेकिन, घटना भी घट गई, कई हताहत हो गए और कई शिकार भी हो गए। घटना थम जाएगी, इसकी गारंटी अभी कोई नहीं देता।

प्रदेश के जातीय समीकरण पर नजर दौड़ाएं, तो मैतई समुदाय की संख्या 53 प्रतिशत के करीब है। जबकि, नागा 40 फीसदी और कुकी समुदाय मात्र 7 फीसद हैं। 3 फीसदी के आसपास मयांग और अन्य धर्मों के लोग मणिपुर में रहते हैं। जो देश के अन्य भागों से आकर यहां बसे हुए हैं। मयांग समुदाय के लोग मुस्लिम धर्म को मानते हैं। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में घटी मौजूदा घटना अचानक से घटने वाली हिंसा तो कतई नहीं है, साफ पता चलता है कि इसकी स्क्रिप्ट अंदरखाने कई वर्षों से लिखी जा रही थी। घटना, कैसे देखते ही देखते 8-9 जिलों में फैल गई, इससे संदेह होता है। फिलहाल, स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने काबू पाया हुआ है। कई जगहां पर धारा 144 लगाकर इंटरनेट सेवाएं बंद की है। स्थिति काबू में हैं, लेकिन घटना फिरसे भड़केंगी, इसका अंदेशा है। तभी, किसी भी अनहोनी होने से निपटने के लिए असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात मुस्तैद हैं।

डा. रमेश ठाकुर
(वरिष्ठ पत्रकार)

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