Tilu Rauteli: उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई, जिन्हे धोखे से मारा गया 

Tilu Rauteli

सामने से वार करने की दुश्मन में नहीं थी हिम्मत

पीठ पर किया धोखे से वार 

सात साल युद्ध कर लिया, अपनों की मौत का बदला 

Report by- Anuradha Singh

उत्तराखंड(Uttarakhand) का इतिहास अपने आप में गौरवान्वित करने वाला है क्योंकि यह एक ऐसा राज्य है जहां की भूमि हमेशा से ही वीर वीरांगनाओं की भूमि रही है और उन वीरांगनाओं में  तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) का नाम बड़े ही सम्मान और आदर के साथ लिया जाता है. तीलू रौतेली(Tilu Rauteli) एक ऐसा नाम जिनके अदम्य साहस और रण कौशल से दुश्मनों के पाव डर के मारे थरथराने लगते थे।आज 8 अगस्त को गढ़वाल (Garhwal)की लक्ष्मी बाई(Lakshmibai) या यह कहें कि उत्तराखंड की झांसी की रानी का जन्म हुआ था आइए आपको बताते हैं उत्तराखंड की नारी वह शक्ति स्वरूप तीलू रौतेली(Tilu Rauteli) के बारे में।

15 साल की उम्र में उस वक्त में जहां लड़कियां गुड्डे गुड़ियों का खेल खेला करती थी, उस उम्र में तीलू रौतेली रणभूमि में कूदकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे तीलू रौतेली(Tilu Rauteli) का वास्तविक नाम तिलोत्तमा देवी था इनका जन्म 8 अगस्त 1663 में पौड़ी(Pauri) गढ़वाल चौंदकोट के गुड़गांव में हुआ था । तीलू रौतेली(Tilu Rauteli) को वीर साहस अपने पिता भूप सिंह से मिला था। तीलू रौतेली के पिता भूप सिंह बहुत ही वीर और साहसी थे जिस कारण से गढ़वाल के नरेश के सेना में भी शामिल थे.

कभी शादी न करने का लिया प्रण 

महज 15 साल की उम्र में तीनों रौतेली(Tilu Rauteli) का विवाह भवानी सिंह नेगी के साथ तय हुआ था मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था क्योंकि उन दिनों गढ़वाल में गढ़वाल नरेश और कत्युरो के बीच लगातार युद्ध हो रहा था जिसमें कत्युरो  के राजा गढ़वाल पर लगातार हमला कर रहे थे, खैरागढ़ में गढ़वाल नरेश मानशाह और उनकी सेवा ने डटकर कत्युरो राजाओं का सामना किया परंतु उन्हें हार के बदले कुछ भी नहीं मिला और अंत में उन्हें युद्ध छोड़कर चौंदकोट में शरण लेनी पड़ी मानशाह के रणभूमि छोड़ने के कारण गढ़वाल(Garhwal) नरेश के सेनापति और तीलू रौतेली के पिता भूप सिंह रावत और उनके दोनों बेटे भगतु और पथ्वा यानी तीलू रौतेली के दोनों भाइयों ने युद्ध की कमान संभाली लेकिन इस भीषण युद्ध में भूप सिंह रावत मारे गए लेकिन युद्ध नहीं रुक युद्ध आरती आगे भी चला रहा और यह अलग-अलग क्षेत्र में फैलता गया तीलू के पिता के मरने के बाद तीलू के दोनों भाई और मंगेतर भवानी सिंह ने युद्ध की कमान संभाली लेकिन कांडा युद्ध ने तीलू से उसके दोनों भाई और उसके मंगेतर को भी छीन लिया अपना परिवार खत्म होने के बाद तीलू पूरी तरह से टूट चुकी थी और उसके बाद उन्होंने प्रण किया कि वह आजीवन शादी नहीं करेंगी 

मां की तीखी बातो ने बनाया वीरांगना

कांडा युद्ध के बाद कांडा  गांव में कौथिग लगा था जिसमें हमेशा से भूप सिंह के परिवार की उपस्थिति होती थी यही वजह थी की तीलू कौथिग में जाने की जिद करने लगी मगर तीलू की मां अभी भी युद्ध में मारे गए अपने पति बेटे और दामाद की मौत का सदमा भूल नहीं पाई थी तीलू के ज़िद्द करने पर तीलू की माँ गुस्से से आग बबूला हो गई  हो गई और उन्होंने तीखे शब्दों में तीलू से कहा कि “मूर्ख तीलू तेरे अंदर जरा सी भी अक्ल है या नहीं तेरे दोनों भाइयों मंगेतर और पिता सबको गुजरे हुए कुछ समय भी नहीं हुआ कि तुझे कौथिग जाने की लगी हुई है तुम भूल गई क्या कि तेरे पिता भाई और तेरे मंगेतर के साथ क्या हुआ अगर तुझे कुछ करना ही है तो युद्ध कर और अपनों की मौत का बदला ले” अपनी मां की यह बात सुनकर तीलू ने प्रण लिया कि वह अपने भाइयों पिता और अपने मंगेतर की मौत का प्रतिशोध लेंगी।

सात साल तक लड़ा युद्ध 

प्रतिशोध की भावना लिए 15 वर्षीय वीरबाला तीलू रौतेली (Tilu Rauteli)ने कमान संभाली। तीलू ने अपने मामा रामू भण्डारी, सलाहकार शिवदत्त पोखरियाल व सहेलियों देवकी और बेलू आदि के संग मिलकर एक सेना का गठन किया । इस सेना के सेनापति महाराष्ट्र(Maharastra) से छत्रपति शिवाजी के सेनानायक श्री गुरु गौरीनाथ थे। उन्होंने सात वर्ष तक लड़ते हुए खैरागढ, टकौलीगढ़, इंडियाकोट भौनखाल, उमरागढी, सल्टमहादेव, मासीगढ़, सराईखेत, उफराईखाल, कलिंकाखाल, डुमैलागढ, भलंगभौण व चौखुटिया सहित 13 किलों पर विजय पाई। 15 मई 1683 को विजयोल्लास में तीलू जब युद्ध समाप्त होने के बाद अपने घर जा रही थी तब उन्होंने नदी के किनारे अपने साथियों के साथ आराम करने का सोचा तीलू के साथी जब सो रहे थे तब तीलू बिना शस्त्रों के नदी पर पानी पीने गई की तभी कत्यूरों की सेना के एक घायल सिपाही ने तीलू पर पीछे से वार कर दिया तीलू अचानक हुए इस वार से बुरी तरह घायल हो गई और यह वीर बाला वीरगति को प्राप्त हो गई.

तीलू रौतेली(Tilu Rauteli) की जीवनी महिलाओं को प्रेरित करने वाली है शायद यही वजह है की उत्तराखंड राज्य की महिलाएं हमेशा देवभूमि उत्तराखंड और अपने देश की सेवा में अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार रहती है.

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