भारत के दक्षिणी छोर से महज 1350 किलोमीटर दूर हिंद महासागर के बीच में मिले कोबाल्ट के पहाड़ पर कई देश अपना अधिकार जमा रहे है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस पहाड़ का नाम अफानासी निकितिन सीमाउंट है। इस पहाड़ पर भारत और श्रीलंका दोनों देश खनन करना चाहते है। मगर ISA ने अभी तक किसी भी देश को मंजूरी नही दी है।
New Delhi, (Shah Times) ।भारत के दक्षिणी छोर से महज 1350 किलोमीटर दूर हिंद महासागर के बीच में मिले कोबाल्ट के पहाड़ पर कई देश अपना अधिकार जमा रहे है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस पहाड़ का नाम अफानासी निकितिन सीमाउंट है। ये भारत नही बल्कि श्रीलंका के ज्यादा नजदीक है। अब भारत और श्रीलंका दोनों इस कोबाल्ट पहाड़ का खनन करना चाहते हैं।
आपको बता दें कि कोबाल्ट का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों और बैटरियों में किया जाता है। कोबाल्ट से कम प्रदूषण होता है और ये ज्यादा टिकाऊ होता है। अगर ये पहाड़ भारत को मिल जाता है तो देश को ऊर्जा की जरूरतों के लिए चीन पर ज्यादा निर्भर नही रहना पड़ेगा।
अलजजीरा ने भारतीय अधिकारियों और विश्लेषकों के हवाले से बताया है कि भारत को डर है कि अगर चीन इस कोबाल्ट पहाड़ पर अपना कब्जा न कर ले इसलिए इस पर खनन के लिए भारत ने इसी साल जनवरी में इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी यानी ISA से परमिशन मांगी और फीस के तौर पर 4 करोड़ से ज्यादा रुपए देने का ऑफर भी दिया। हालांकि ISA ने भारत के इस ऑफर को नामंजूर कर दिया।
नियमों के अनुसार अगर किसी देश को समुद्र में कुछ रिसर्च करना हो तो इसके लिए ISA से परमिशन लेनी होती है। खासकर तब जब वो इलाका किसी भी देश के अधीन न आता हो। बताया जा रहा की अगर ISA ने भारत को खनन से जुड़ी मंजूरी दी होती तो भारत कोबाल्ट के पहाड़ पर 15 सालों तक रिसर्च कर पाता।
दरअसल ISA से भारत के अलावा एक और देश ने खनन की अनुमति मांगी थी। विवाद से बचने के लिए ISA ने किसी भी देश को खनन की मंजूरी नहीं दी। हालांकि अभी तक ये पता नहीं चल पाया है कि भारत के अलावा वो दूसरा देश कौन है जो खनन की मंजूरी चाहता है। मगर ऐसा माना जा रहा है कि ये दूसरा देश शायद श्रीलंका हो सकता है। इस बीच भारत ने ISA को इस द्वीप से जुड़े सवालों का जवाब दे दिया है। भारत को उम्मीद है कि ISA फिर से उसके अनुरोध पर विचार कर सकता है।
श्रीलंका भारत का समुंद्री सीमांके हिसाब से सबसे नज़दीकी देश है।किसी भी देश की समुंद्री सीमा अंतराष्ट्रीय नियमों के हिसाब से उसकी सीमा 12 नॉटिकल मील यानि 22.2 किलोमीटर होती हैं। Un की संधि के मुताबिक कोई भी देश 200 समुंद्री मील तक कोई भी गतिविधि कर सकता है।