
Supreme court shah times
नई दिल्ली। सत्ताईस साल पहले एक मर्डर के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बाप बेटे को बरी कर दिया है। जिसमें उन्हें 25 साल पहले उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।सुप्रीम कोर्ट ने बेनीफिट ऑफ डाउट की बुनियाद पर दोनों को बरी किया। अदालत का ये भी कहना था प्रासीक्यूशन दोनों के खिलाफ आरोप साबित नहीं कर सका। सुप्रीम कोर्ट ने हैरत जताई कि ना तो मामले में कोई चश्मदीद था और ना ही मुल्जिमों के खिलाफ ठोस सबूत।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर होने का वक्त बदलकर पहले कर दिया गया था, पोस्टमॉर्टम में देरी हुई थी और जरायम के हथियारों के नाम में फर्क था अपील लंबित रहने के दौरान बेटे की मौत हो गई ।
जस्टिस राम सुब्रमण्यम और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ना तो सेशन कोर्ट और ना ही हाईकोर्ट ने मामले के अहम पहलुओं को देखा। सुप्रीम कोर्ट में बाप बेटे ने 2011 में अपील दायर की थी। 12 साल की सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया। मोहम्मद मुस्लिम और उसके बेटे शमशाद को फंसाने के लिए पुलिस ने एफआईआर का वक्त दोपहर 1:50 बजे से बदलकर सुबह 9 बजे कर दिया था। पीठ ने कहा कि एफआईआर में मर्डर का वक्त और तारीख 4 अगस्त 1995 को सुबह 9 बजे का तजकरा किया गया था, हालांकि मर्डर दोपहर 1.50 बजे हुई थी।
मामले के मुताबिक उत्तराखंड में ये वारदात हुई थी जो उस वक्त उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। अलताफ हुसैन का मो. मुस्लिम और शमशाद से जमीन को लेकर विवाद था। एक दिन अलताफ अपनी साइकिल पर बेटे और भतीजे के साथ कहीं जा रहा था। उसी दौरान दो लोग आए और धारदार हथियारों से अलताफ पर हमला कर दिया। 1995 में ये वारदात हुई थी।
पुलिस की थ्यौरी के मुताबिक मुल्जिम अपनी साइकिल और कंबल छोड़कर जंगल की तरफ भाग निकले। 4 अगस्त 1995 को पुलिस ने मर्डर को लेकर केस दर्ज किया। लेकिन कोर्ट में पुलिस ने अपनी रिपोर्ट चार दिन बाद भेजी। विवेचना अधिकारी ने साइकिल और कंबल मौके से बरामद कर लिया था। लेकिन दोनों ही चीजें कभी भी कोर्ट में पेश नहीं की जा सकीं।
ट्रायल कोर्ट ने 1998 में पिता-पुत्र को हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इलाहाबाद high कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दोष सिद्धि और सजा को बरकरार रखा। मुल्जिम बाप बेटे ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, हालांकि अपील के लंबित रहने के दौरान 2021 में बेटे की मौत हो गई। मोहम्मद मुस्लिम की उम्र अब लगभग 79 साल है और वह छह साल जेल में रह चुके हैं। वह 2013 से जमानत पर हैं।
बेंच ने कहा, ट्रायल कोर्ट ने इस हकीकत को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि न केवल वक्त बदल दिया गया है, बल्कि ‘पीएम’ शब्द को भी बदलकर ‘एएम’ कर दिया गया है..एफआईआर का समय दोपहर 1:50 बजे से पहले करके सुबह 9:00 बजे किया गया है।”
पुलिस के मुताबिक, आरोपियों के साथ जमीन विवाद को लेकर कोर्ट जा रहे अल्ताफ हुसैन की हत्या कर दी गई। पीठ ने कहा कि यदि मृतक अदालत जा रहा था, तो वह सुबह अदालत शुरू होने से पहले जा रहा होता, न कि दोपहर में, वह भी लंच के बाद के सत्र में।
पीठ ने कहा, यह सही ठहराने के लिए कि मृतक अल्ताफ हुसैन सुबह अदालत जा रहे थे, एफआईआर का समय बदलकर सुबह 9.00 बजे कर दिया गया है। अगर घटना सुबह 9.00 बजे से पहले हुई थी, और पुलिस सुबह 10.00 बजे घटनास्थल पर पहुंच गई थी तो उसके तुरंत बाद दोपहर तक शव को मोर्चरी में भेज दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मृतक अल्ताफ हुसैन के शव को देर शाम तक मोर्चरी में भेजा गया। तब तक पोस्टमॉर्टम का समय बीत चुका था इसलिए पोस्टमॉर्टम अगले दिन करना पड़ा।” पीठ ने कहा कि भले ही मौखिक साक्ष्य में अन्य छोटी विसंगतियों को नजरअंदाज कर दिया जाए, पोस्टमॉर्टम करने में देरी, अपराध के हथियारों के नाम में अंतर.. यह एक ऐसा मामला है जहां अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है कि आरोपी अपीलकर्ताओं ने कोई अपराध किया है।
अपीलकर्ता को बरी करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, उपरोक्त एफआईआर को देखने से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि इसमें उल्लिखित दर्ज कराने के समय में कुछ हेरफेर किया गया है। यह नग्न आंखों से स्पष्ट है कि ‘1’ को ‘9’ में बदल दिया गया है। ‘ और ‘5’ को ‘0’ बनाने के लिए पूर्णांकित किया गया है, जबकि ‘पीएम’ को ‘एएम’ में बदल दिया गया है। दूसरे शब्दों में, दोपहर 1:50 बजे को सुबह 9:00 बजे में बदल दिया गया है। यह एफआईआर से पूरी तरह से स्पष्ट है और इस पर दो राय नहीं हो सकती।
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