भारत में मुसलमानों के लिए मौजूदा स्थिति चिंताजनक है। हालांकि शिक्षा और कल्याण कार्यक्रमों में मुसलमानों की भागीदारी में सुधार हुआ है, लेकिन सामाजिक विभाजन पिछले कुछ समय में उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। मुसलमानों के प्रति सरकारी तंत्र के रवैये में भी कई राज्यों में यह झलक साफ़ दिखाई पड़ती है। हाल की घटनाओं और मुठभेड़ों ने इस बात को लेकर चिंता को और बढ़ा दिया है कि आगे क्या होने वाला है। कई दशकों से भारत “विविधता में एकता” शब्द का बेहतरीन उदाहरण रहा है। विविधता में एकता की इस अवधारणा को एकरूपता के बिना एकता और बिना विघटन के विविधता के रूप में समझा जा सकता है। विविधता एक सांस्कृतिक और नैतिक संपत्ति रही है। आज के समय में अंतर्राष्ट्रीय दर्शन का महत्वपूर्ण आधार भी है। पर दुर्भाग्य से समकालीन भारत में क्षुद्र राजनितिक लाभ के लिए इस पर चोट की जा रही है।
Dainik Shah Times E-Paper 9 May 23
वर्तमान में भारत में हिंसा की बढ़ती प्रवृति व धार्मिक भेदभाव की बढ़ती घटनाओं के कारण व्यापक रूप से बेचैनी का अनुभव किया जा सकता है, मुस्लिम समुदाय इस प्रवृत्ति का खामियाजा ख़ास तौर पर उठा रहा है। इसके बढ़ते प्रकोप ने हमारे देश के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है। धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरता, और सामाजिक विभाजनों से उत्पन्न होने वाले राजनीतिक लाभ फूट पैदा करने के मुख्य कारण हैं। जैसा कि देखा गया है, धार्मिक जुलूसों के दौरान भड़काऊ नारे और एक समुदाय के खिलाफ खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण राज्य की कार्रवाई संभावित बड़े खतरे की स्थिति पैदा कर रही है। दुर्भाग्य से, धर्म, नैतिकता और सार्वजनिक आचरण को बेहतर बनाने के बजाय, राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
भारत में बढ़ती बेचैनी में कई कारक योगदान दे रहे हैं, जिनमें धार्मिक अतिवाद और कट्टर दुराचारियों का उदय, गलत सूचना और प्रचार, और मीडिया में रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों का कायम होना हैI इसके अलावा सांप्रदायिक धुर्वीकरण से शर्तिया राजनीतिक लाभ का मिलना भी शामिल है। चुनावी मौसम में ध्रुवीकरण इन कारकों के परिणामस्वरूप अभद्र भाषा, हिंसा और भेदभाव में वृद्धि हुई है। और कुछ मामलों में, अपने वोटर्स व कार्यकर्ताओं को राजनीतिक संदेश देने के लिए भी कुछ राज्य सरकारें ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम दे रही हैं।
धार्मिक स्थलों पर उपद्रवियों के हमले और राज्य के अधिकारियों की तरफ से एक धर्म से सम्बंधित सम्पत्तियों के खिलाफ विध्वंस अभियान लगभग एक ही समय में चलाए जाने से प्रतीत होता है जैसे कि ये कार्य एक विशेष संदेश देने के लिए मिलकर कर किया जा रहा हो। जिस से समाज के एक वर्ग के बीच असुरक्षा और बेचैनी की भावना पैदा हो रही है। सोशल मीडिया पर इस प्रकार के संदेशों की भारी बाढ़ दिख रही है कि कैसे बहुत अधिक संख्या में पंजीकृत मामलों वाले अपराधी, ख़ास पहचान के चलते मुक्त घूम रहे हैं। यह अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के दावे पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। दुर्भाग्य से, लेकिन वास्तव में, ऐसा प्रतीत होता है की ऐसी नीतियां अपराध के बजाय अपराधी के रंग को देख कर की जाती हैं।
अब समय आ गया है कि हम नफरत और असहिष्णुता के बढ़ते ज्वार और राजनीतिक रूप से संचालित कार्रवाइयों का मुकाबला करने के लिए सक्रिय कदम उठाएं। जहां न्यायपालिका और सार्वजनिक संस्थानों को संवैधानिक गारंटी की रक्षा के लिए सक्रिय होने की आवश्यकता है, वहीं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और बहुलतावाद के सांस्कृतिक मूल्यों और मानवतावाद के नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए बहुसंख्यक समुदाय को भी जागृत होने की आवश्यकता है। साथ ही भारत के मुस्लिम समुदाय के लिए भी बदली हुई राजनीतिक वास्तविकता को स्वीकारना व उसके साथ तालमेल बिठाना आवश्यक है। IMPAR में हम जिन प्रमुख कदमों पर जोर दे रहे हैं, उनमें से एक है- सामुदायिक सेवाओं को मुस्लिम समुदाय अधिक सक्रिय रूप से करे और साथ ही सामाजिक संवाद और बेहतर समझ पैदा करने में संलग्न हो।
भारत संक्रमणकालीन समाज है, सामाजिक मानदंड और मूल्य लगातार विकसित हो रहे हैं। मुसलमानों को भी इन परिवर्तनों के अनुकूल होने की आवश्यकता है और अपने मूल धार्मिक विश्वासों से समझौता किए बिना बेहतर सामाजिक व सांस्कृतिक समावेश की ज़रुरत है। इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना व भारतीय समाज में बेहतर एकीकृत होने से समुदायों को विभाजित करने वाली बाधाओं को तोड़ने में मदद कर सकता है। राष्ट्र और उसके सामूहिक विवेक को धार्मिक अतिवाद की निंदा करनी चाहिए। हिंसा के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए कानूनी साधनों का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन, राजनीतिक जुड़ाव को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
दुर्भाग्य से, हमारे पास न तो राजनीतिक पूंजी है और न ही तत्कालीन सत्ताधारी शासन से कोई जुड़ाव है। जिसने भी दोनों में से किसी एक का प्रयास किया, उसे कौम के गद्दार के रूप में दुष्प्रचारित किया गया। ऐसे में किसी भी मुसलमान को गंभीर और स्थाई प्रयास करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं बचता है। समुदाय को ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण करने और वास्तव में अपने क्रियाकलापों को ठीक करने की तत्काल आवश्यकता है। सरकार को बदलने के एकमात्र लक्ष्य तक सीमित रहने के बजाय समुदाय को लोगों की सेवा करने के लिए काम करना चाहिए। सरकारें बदलने से किसी समुदाय का भाग्य नहीं बदला है। न अतीत में ऐसा हुआ है और न ही भविष्य में होगा।
अंत में, सरकारों को राष्ट्र के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखते हुए अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है, न कि बदले की भावना से प्रेरित होने और घटनाओं को राजनीतिक लाभ के संकीर्ण चश्मे से देखने की। सरकारों को भारतीय मुस्लिम समुदाय में बढ़ती बेचैनी को दूर करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की की जरूरत है। न्याय न सिर्फ हो बल्कि होता हुआ दिखे भी। यदपि हाल की घटनाओं को लेकर समाज में ख़ामोशी है, लेकिन सोशल मीडिया पर उठ रहे सवाल काफी वाजिब हैं। इनका जवाब समाज और सरकारों को देना होगा। इम्पार देश के संस्थानों, सरकार और समाज से तत्काल संज्ञान लेने की मांग करती है। यह एक समाज के रूप में साथ आने, विविधता को अपनाने, मतभेदों को पहचानने और एक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में काम करने का समय है जो भारतीयता की पहचान को मजबूत करने और भारत को विश्व की उभरती शक्ति के रूप में आगे बढ़ाने में सहयोगी साबित हो।
~ डॉ. एम जे ख़ान
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और मुस्लिम समाज में सामाजिक शैक्षिक आर्थिक और राजनीतिक चेतना के लिए काम करने वाले थिंक टैंक ‘इंपार’ के अध्यक्ष हैं)
Politically motivated polarization will pay a heavy price
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