यजीद के दौर से ही शुरू हो गई दहशतगर्दी

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखें बंद होने के बाद से ही दहशतगर्दी पनपने लगी थी

~जिया अब्बास ज़ैदी 

बहुत अर्से से दुनिया में दहशतगर्दी का जोर-शोर बहुत ज्यादा बढ़ गया है। आम लोग दहशतगर्दी को सही तरह जानना चाहते हैं। हम बता दें कि दहशतगर्दी इस जमाने की पैदावार नहीं है । अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखें बंद होने के बाद से ही दहशतगर्दी पनपने लगी थी ।

वाकए करबला एकदम सन बासठ हिजरी में अचानक नहीं हो गया था। गौरो-फिक्र की जरूरत है कि रसूल (स.अ.) के बाद सिर्फ थोड़े अर्से में ही दहशतगद यजीद के हौसले इतने बुलंद कैसे हो गए कि उसने रसूल (स.अ.) के नवासे, उनके भाइयों, भतीजों, भांजों और अंसार, छोटे बच्चों को तीन दिन का भूखा, प्यासा रखा । यजीद ने इस्लाम का नकाब पहनकर शराबखोरी, जिनाकारी, झूठ, फरेब, गरीबों पर जुल्म को आम कर दिया था।

यजीद चाहता था कि हुसैन इस सबको खामोशी से बर्दाश्त कर लें और यजीद की हुकूमत को जायज करार दे दें, लेकिन नवासाए रसूल ने यह बर्दाश्त नहीं किया। वह अपने अहलोअयाल व अपने साथियों को लेकर मदीने से निकल पड़े, हज का मौका था, हुसैन भी हज करना चाहते थे, मगर उन्हें इल्म हो गया कि यजीद के फौजी हाजियों की शक्ल में मक्का आ गए हैं और वहीं उनका कत्ल करना चाहते हैं, ताकि खामोशी के साथ हुसैन कत्ल हो जाएं और दुनिया को पता भी न चले। बस हुसैन ने हज को उमरे से तब्दील किया और खामोशी के साथ मक्का से अपने सब साथियों को लेकर निकल पड़े। दो मोहर्रम को करबला में पहुंच गए। यजीद ने अपने लश्कर पहले से ही तैनात कर रखे थे । यजीद ने उमरसाद की पैरवी में बड़े लश्कर को हुसैन को शहीद करने भेजा था।

     उमरसाद ने हुसैन के काफिले को जो नहरे फरात के किनारे खेमाजन था, वहां अपने खेमों को हटाने हुक्म दिया। हुसैन ने पानी के लिए जंग नहीं करनी चाही और अपने खेमें खामोशी से नहरे फरात से दूर नस्ब कर लिए। पस लश्कर पर लश्कर यजीद भेजता रहा और सात मोहर्रम को उमरेसाद ने हुसैन के सभी साथियों का पानी बंद कर दिया।

    दस मोहर्रम को करबला की जंग हुई, जिसमें एक तरफ लश्कर यजीद के लाखों फौजी थे और दूसरी तरफ बूढ़े, बच्चे सब मिलकर कुल 72 लोग थे, जिनमें छह माह के हुसैन के बेटे अली असगर भी थे, जिन्हें पानी न देकर हुसैन की आगोश में शहीद किया गया, लेकिन इसी लश्करे यजीद से एक यजीदी फौज का सिपेह सालार हुसैन के साथ आया और हुसैन मदद में शहीद हुआ।

  उसने सबको बताया कि मैं जहन्नुम से जन्नत की तरफ जा रहा हूं। दस मोहर्रम की शाम को जब सब शहीद हो गए, तो यजीदी फौज ने हुसैनजादियों, बच्चों को गिरफ्तार कर लिया और हुसैन के बीमार बेटे जैनुल आबेदीन को भी गिरफ्तार करके बेड़ियां पहनाकर नंगे पैर करबला से कूफा के शाम में लेकर गए। हुसैन की तीन साल की बेटी सकीना के भी हाथ बांधे गए।

      जुल्मों-सितम रसूल के इस कुन्बे पर ढहाते हुए यह फौज उन्हें शाम में यजीद के दरबार में लेकर गई। अब यजीद तख्त पर था और ये रसूल का कुनबा सामने खड़ा किया गया था। यजीद की दहशतगर्दी यहीं खत्म नहीं हुई । मदीने में उसने जुल्म ढहाए । काबे की सरजमीन पर जुल्म ढहाए। वाकए हुर्रा जुल्मों-सितम की दास्तान से भरा हुआ है। शिया लोग हर साल इसी दहशत को दुनिया को बताने के लिए जुलूस निकालते हैं, ताकि दुनिया में उजागर हो जाए कि दहशत का जन्म यजीद के साथ हो चुका था।

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