मासिक धर्म के दौरान महिलाओं की छुट्टी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक मॉडल नीति तैयार करे।

मासिक धर्म के दौरान कामकाजी महिलाओं को अवकाश दिए जाने का मामला काफी दिनों से चर्चा में है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और उनकी खंडपीठ ने साफ कह दिया है कि इस मुद्दे पर केंद्र तथा राज्य सरकार मिलकर फैसला लें।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक मॉडल नीति तैयार करे।

इस दौरान कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को इस तरह की छुट्टी देने के बारे में निर्णय प्रतिकूल और ‘हानिकारक’ साबित हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा आदेश देने से नियोक्ता महिलाओं को काम पर रखने से बच सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह छुट्टी ज्यादा महिलाओं को वर्कफोर्स का हिस्सा बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। अगर इस तरह का अवकाश दिया गया तो जरूरी महिलाएं वर्कफोर्स से दूर हो जाएंगी। सीजेआई ने कहा कि हम ऐसा नहीं चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कहा कि हम याचिकाकर्ता को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव और एएसजी ऐश्वर्या भाटी के समक्ष अपनी बात रखने की अनुमति देते हैं।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वकील शैलेंद्रमणि त्रिपाठी की ओर से एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इसमें कहा गया कि मातृत्व लाभ अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति भी सुनिश्चित की जाए। मौजूदा दौर में बिहार ही एकमात्र राज्य है जो 1992 की नीति के तहत विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान करता है। इस याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 को प्रभावी ढंग से लागू करने के निर्देश देने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की गई।

इससे पहले भी फरवरी में, सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था, जिसका उद्देश्य सभी राज्यों के लिए महिला छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म की छुट्टियां देना अनिवार्य बनाना था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने इसी तरह का कारण बताते हुए इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह सरकार के नीति क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

 रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ वकील ने कहा कि केंद्र ने इस मामले पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने याचिकाकर्ता और वकील शैलेन्द्र त्रिपाठी की ओर से पेश वकील राकेश खन्ना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के पास जाने की भी अनुमति दे दी।

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