यूसुफ अंसारी
देश की राजधानी दिल्ली में बरसों से चल रही मुख्यमंत्री बनाम उपराज्यपाल ( CMvsLG) की संवैधानिक शक्तियों पर पूछताछ के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज (गुरुवार) बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने माना कि नौकरशाहों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होना चाहिए। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि दिल्ली में सुनील सरकारी सर्वोपरि है।
अभी तक उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस माना जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली का मुख्यमंत्री ही दिल्ली का बॉस होगा। उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच चल रही लड़ाई में यह दिल्ली सरकार की बड़ी जीत है।
आज दिल्ली के असली बॉस बन गए अरविंद केजरीवाल
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ने संवैधानिक बेंच का फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने के लिए केंद्र की दलीलों से निपटना जरूरी है। एनसीडीटी एक्ट का अनुच्छेद 239एए विस्तृत अधिकार परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद विधानसभा की शक्तियों की समुचित व्याख्या करता है। इसमें तीन विषयों को सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार में उत्साह का माहौल है। आम आदमी पार्टी इसे बीजेपी और केंद्र सरकार के साथ अपनी जंग में बड़ी जीत बता रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
दिल्ली सरकार बनाम एलजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र और संघवाद के सिद्धांत बुनियादी संरचना संघवाद का एक हिस्सा है, जो विविध हितों के अस्तित्व को सुनिश्चित करते हैं। वहीं, विविध आवश्यकताओं को समायोजित करते हैं। पीठ ने कहा कि राज्यों के पास शक्ति है, लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति संघ के मौजूदा कानून के अधीन है। यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ अपने हाथ में न ले।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर प्रशासनिक सेवाओं को विधायी और कार्यकारी डोमैन से बाहर रखा जाता है, तो मंत्रियों को उन सिविल सेवकों को कंट्रोल करने से बाहर रखा जाएगा। जिन्हें कार्यकारी निर्णयों को लागू करना है।अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सेवाओं पर नियंत्रण सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित प्रविष्टियों तक नहीं होगा। दिल्ली सरकार अन्य प्रदेशों की तरह प्रतिनिधि रूप का प्रतिनिधित्व करती है। संघ की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के विपरीत होगा।
तबादलों और पोस्टिंग को लेकर विवाद
सीजीआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच चल रहे विवाद पर फैसला सुनाया। इस फैसले से साफ हो गया है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग को लेकर प्रशासनिक सेवाओं का कंट्रोल करेगी। इससे पहले दिल्ली सरकार पोस्टिंग और तबादलों की फाइल भी एलजी को भेजते थी और एलजी उस पर फैसला करते थे लेकिन अब दिल्ली सरकार इस मामले में पूरी तरह स्वतंत्र है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले अधिकारियों की पोस्टिंग और तबादले अपनी मर्जी से कर सकती है।
दिल्ली सरकार और एलजी के बीच खींचतान
दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच लंबे समय से खींचतान चली आ रही है हाल ही में दिल्ली सरकार के बजट को भी एलजी ने 1 दिन पहले पेश करने से रोक दिया था इसको लेकर भी काफी दोनों के बीच काफी खींचतान हुई थी उपराज्यपाल की तरफ से कहा गया था कि दिल्ली सरकार ने अपने प्रचार प्रसार का बजट दोगुना कर दिया है। जबकि दिल्ली सरकार ने सफाई दी थी कि प्रचार-प्रसार के बजट में किसी तरह की कोई तब्दीली नहीं की गई है। राज्यपाल ने जानबूझकर दिल्ली सरकार को नीचा दिखाने के लिए उसका बजट रोका है। इसके एक दिन बाद ही दिल्ली सरकार का बजट पेश हो गया था। दिल्ली सरकार अपने अध्यापकों के एक डेलिगेशन को विदेश ट्रेनिंग के लिए भेजना चाहती थी लेकिन राज्यपाल ने इसकी मंजूरी देने में कई महीने लगा दी है आखिरकार जब राज्यपाल ने मंजूरी दी तब तक डेलिगेशन को विदेश भेजने का वक्त खत्म हो चुका था इस मामले पर भी दिल्ली सरकार ने एलजी के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। के साल से दोनों के बीच इस तरह के कई मामलों में 3 स्थान देखने को मिली है। प्रेम कोर्ट के इस फैसले के बाद इस तरह की खींचतान कम होने की उम्मीद है।
अरविंद केजरीवाल के दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही केंद्र सरकार की कोशिश दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करने की रही है इसके लिए कई बार कानूनों में बदलाव किया गया कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार कबीर बनी है कि उसे चुन्नू सरकार के वह तमाम अधिकार मिलेंगे जिसकी वह हकदार है इसलिए माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला फैसले ने दिल्ली और उपराज्यपाल के बीच चल रही खींचतान के मामले में इंसाफ किया है। फैसला है इसके दिल्ली और देश की राजनीति में दूरगामी असर होंगे।
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