बेचारे फादर का (फादर्स डे)

फादर डे । साल मे एक बार आने वाले दिन मे जिन बच्चों के पिता इस दुनियां में है या स्वर्गवास हो चूके है। उन्हे ऐसा लगाता है। की फादर (पिता) एक ऐसा मसीहा है। या था। जिसके बिना किसी का कोई घर, या यू कह ले अगर किसी के घर में बाप न हो उससे पूछो आप का घर कैसे चल रहा है। तो शायद आप को दुनिया मे उस परिवार उसके बाप (पिता) की एहमियत का एहसास हो जाएगा। पिता एक बरगद का पेड़ हैं। जो खुद धूप, छाव, खुशी गम से लड़ता हुआ अपने परिवार के लालन पालन मे वा अपनी ज़िंदगी की फिफ्टी (आधी उम्र)कैसे पूरी कर गया। इसका पता उसे शायद अपनी दाढ़ी बनाते पर पत्ता चलता है। कि उसके सिर पर सफ़ेद बाल सफ़ेद दाढ़ी मूंह पर जुरिया उस फॉदर को अपनी ऊमर बताती। की तुम बचपन से युवा और युवा से फॉदर कब बन गए।

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उसे पता ही नही चला कि जिनके लिए उसने अपनी तमाम उम्र बिता दी। जब वो उने यह कह देते है। पापा आप को कुछ भी नहीं पता? तब उस समय फादर (पिता) को यह लगता की जिन बच्चों के लिए जिस परिवार के लिए उसने उम्र तमाम कर दी।

उनके बच्चे किसी समय अपनो माता पिता को नहीं पुछते। तब एक गीतकार लता मंगेशकर के गीत की वो चंद लाइनें याद आती है। जिसमें वो कहती है। मेरे टूटे हुए दिल से कोई तो आज यह पूछे कि तेरा हॉल क्या है।….पूछे कि तेरा हॉल क्या है? जिसे राज कपूर जी ने फिल्म छलिया गया था। जो आज कल की युवा पीढ़ी पर स्टीक होते दिखाई पड़ते हैं।

लेखक-राजकुमार शर्मा, लुधियाना-पंजाब

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