HomeInternationalसरहद उस पार भी ‘पठान’ हिट

सरहद उस पार भी ‘पठान’ हिट

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मोहम्मद शहजाद

(लेखक हिंदुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी उर्दू सर्विस के हेड हैं )

‘‘हिंदुस्तान में पठान ने तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए, तारीखी कामियाबी। पाकिस्तान में पठान पर एफआईआर पर एफआईआर कटवाई जा रही है। और मौजूदा हालात में पाकिस्तानी पठान की कामियाबी नजर नहीं आती। मगर सुना है कि आने वाले इलेक्शन में पाकिस्तानी पठान की एडवांस बुकिंग हिंदुस्तानी पठान से ज्यादा है।’’ उक्त तुलनात्मक टिप्पणी पाकिस्तान के मशहूर पटकथा लेखक, टीवी प्रस्तोता और व्यंग्यकार अनवर मकसूद ने की है जो न सिर्फ काफी हिट रही बल्कि बिलकुल ‘फिट’ भी साबित हुई। इतनी फिट कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अनवर मकसूद साहब को अनायास ही ‘भविष्यवक्ता’ भी मान लेने को जी चाहता है।
दरअसल उन्होंने यह उद्गार हमसाया मुल्क पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के सुप्रीमो इमरान खान की हालिया गिरफ्तारी से कई दिन पूर्व एक प्रोग्राम में व्यक्त किए थे। उनका आशय सरहद ‘इस पार’ की फिल्म पठान के जरिए सरहद ‘उस पार’ के पठान यानी इमरान खान को लेकर जारी सियासी ड्रामे का सजीव चित्रण करना था। हुआ भी बिलकुल वैसा ही। बात एफआईआर से होती हुई इमरान खान की गिरफ्तारी तक जा पहुंची। उस गिरफ्तारी में मसाला फिल्मों की तरह सस्पेंस, थ्रिलर और इमोशन जैसे सारे पुट थे।
8 मई को इमरान खान जब इस्लामाबाद हाईकोर्ट में पेशी के लिए लाहौर से रवाना हुए तो उन्हें अपनी गिरफ्तारी का आभास पहले से था। इसलिए उन्होंने पहले ही अपने एक वीडियो संदेश द्वारा कहा कि वह मानसिक तौर पर गिरफ्तारी के लिए तैयार हैं। यह एक तरह से पीटीआई के कार्यकर्ताओं को ललकारने का संकेत था। इमरान खान इस्लामाबाद हाईकोर्ट पहुंचे तो नेशनल अकाउंटैबिलिटी ब्यूरो (नैब) ने पाकिस्तानी रैंजर्स के जरिए उन्हें अल-कादिर ट्रस्ट मामले में अदालत के बायोमेट्रिक कमरे से शीशे तोड़कर अनुचित तरीके से गिरफ्तार या यूं कहें कि अपहरण करवा लिया। इस दौरान रैंजर्स ने उनके साथ हाथापाई भी की। फिर उन्हें नैब की अदालत में पेश किया गया जहां से उन्हें रिमांड में भेज दिया गया।
अगर नैब ने गिरफ्तारी वारंट दिखाया होता और विधि संगत कार्रवाई की होती तो शायद सरेंडर करना इमरान खान की मजबूरी होती। गिरफ्तारी से पूर्व उन्होंने अपने वीडियो पैगाम में आत्मसर्पण का भरोसा भी दिलाया था लेकिन सत्ताधारी पीडीएम गठबंधन दलों की इमरान की सियासत खत्म करने की छटपटाहट ने ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’ वाला काम किया। चूंकि इमरान खान और पीटीआई के दीगर नेताओं के वीडियो संदेश पहले ही उनके कार्यकर्ताओं तक पहुंच चुके थे, इसलिए इमरान के समर्थक टोले ने अगले तीन दिन जो कहर बरपाया वह शायद पाकिस्तान के इतिहास में कभी नहीं हुआ।
इस्लामाबाद, लाहौर और रावलपिंडी समेत कई शहर मैदान-ए-जंग बन गए। लगभग 15 लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए। जलाव-पथराव में सरकारी संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया गया। राजनीतिक अस्थिरता से उत्पन्न हिंसा में इसे एक सामान्य घटना की संज्ञा दी जा सकती है लेकिन पीटीआई कार्यकर्ताओं के जरिए लाहौर में कोर कमांडर हाउस (जो कभी कायदे आजम जिन्ना का घर हुआ करता था) को आग के हवाले करना और जीएचक्यू रावलपिंडी का गेट तोड़कर उसके अंदर घुसने जैसी जुर्रत पहले कभी किसी ने नहीं की थी।
इस पर पाक सेना की प्रवक्ता संस्था आर्एसपीआर को कहना पड़ा कि जो काम दुश्मन 75 सालों में न कर सके, वह सत्ता के लिए राजनीतिक चोला ओढ़े एक गिरोह ने कर दिखाया। फौज ने काफी धैर्य से काम लिया। देश में मची इस अफरातफरी पर सुप्रीम कोर्ट को हरकत में आना पड़ा और उसने इमरान खान को फौरन अदालत में पेश करने का आदेश दे दिया। इसके बाद हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान उमर अता बिंदयाल की पीठ ने इमरान की गिरफ्तारी को गैर-कानूनी ठहराते हुए उन्हें इस्लामाबाद हाईकोर्ट जाने को कहा। इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें अल-कादिर मामले में जमानत दे दी। इसके साथ ही कुछ दिनों तक किसी नए मामले में गिरफ्तारी से भी सुरक्षा कवच दे दिया।
इस पर सत्ताधारी गठबंधन का तिलमिलाना लाजमी था। उसको लगा कि देश की न्यायपालिका इमरान खान के बचाव में फौलादी दीवार बनकर खड़ी हो गई। हालांकि न्यायपालिका पर यह आरोप लगाते हुए पीएमएल (नवाज) और पीपीपी जैसे सत्ताधारी दलों के नेता यह भूल जाते हैं कि यह वही सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस उमर अता बिंदयाल हैं जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की सिफारिश पर राष्ट्रपति आरिफ अलवी द्वारा नेशनल असेंबली को भंग करने को असंवैधानिक करार दिया था। और इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने को कहा था। इसके बाद ही एक दूसरे के धुर विरोधी रहे पीएमएल (नवाज) और पीपीपी समेत बीस से ज्यादा दलों का सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
इस दौरान पाकिस्तानी आर्मी ने फिर कहा कि उसे देश की जम्हूरियत (लोकतंत्र) में पूरा भरोसा है और मार्शल लगाए जाने के कयासों को नकार दिया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर पाकिस्तानी सेना को ऐसा करने से किसने रोका? वह भी उस सेना को जिसके मुंह को सत्ता खून लगा हो। वह सेना जो चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों का तख्ता पलटने के लिए कुख्यात हो। पाकिस्तान की सैन्य शक्ति के आगे पाकिस्तान में आज तक कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। यही वजह है कि पाकिस्तान में स्टैब्लिशमेंट से पंगा लेने की हिम्मत किसी में नहीं है।
हालांकि जो कुछ हुआ, उसमें यह कहना बेमानी है कि ऐसा पाक आर्मी की शह के बिना हुआ होगा। इमरान की गिरफ्तारी में अर्धसैनिक बल पाक रैंजर्स का साथ देना, इस आशंका को और पुख्ता करता है। अलबत्ता इस बार पासा कुछ उल्टा जरूर पड़ गया है। कभी सेना की आंखों के तारे रहे इमरान खान ने ही उनकी बाजी उलट दी है। आज पाकिस्तानी अवाम इमरान को अपने हर दुख-दर्द का मसीहा मानती है। उसे लगता है कि वह नेशनल हीरो हैं और देश में आसमान छूती महंगाई, दिवालिया होती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी जैसी समास्याओं का हल वही कर सकते हैं। इमरान खान ने अपने समर्थकों के इसी भरोसे को कैश किया। उनके पीछे अब समर्थकों का एक ऐसा टोला तैयार हो चुका है जो स्टैबलिशमेंट से भी पंगे लेने से गुरेज नहीं कर रहा है। इसकी एक बानगी ज़मान पार्क स्थित इमरान खान के आवास के बाहर पिछले दिनों उनकी गिरफ्तारी की नाकाम कोशिश के दौरान पूरी दुनिया देख ही चुकी थी। उस ट्रेलर की पूरी फिल्म इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद भी सेना ने देखी। ऐसे में सेना को यह आभास हो चुका है कि इमरान पर सीधे हाथ डालने पर उसका अंजाम क्या हो सकता है?
देखा जाए तो इमरान पर अवाम के इस भरोसे में जुनून पैदा करने का काम सेना ने ही किया है। ‘प्रोजेक्ट इमरान’ के जरिए एक तरह से सेना ने ही इमरान को 2018 में सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। शरीफ बंधुओं और भुट्टो-जरदारी परिवार की राजनीति से ऊब चुकी जनता को पाकिस्तान को क्रिकेट विश्व कप का विजेता बनाने से लेकर शौकत खानम कैंसर अस्पताल देने वाले इमरान में आस की किरण नजर आई। नया पाकिस्तान, भ्रष्टाचार मुक्त पाकिस्तान, बेरोजगारी खत्म करने जैसे ख्वाब दिखाने वाले इमरान का तिलस्म शायद उनकी सत्ता की मियाद पूरी होने पर काफी हद तक टूट जाता क्योंकि अपने इन बुलंद दावों को पूरा करने में वह बुरी तरह नाकाम रहे। दूसरों को चोर-चोर कहते साढ़े तीन साल के कार्यकाल में ही उनके अपने दामन पर भी तोशाखाना जैसे भ्रष्टाचार की छींटे आने लगे। अगले आम चुनाव में इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता लेकिन उससे पहले ही नए आईएसआई चीफ की नियुक्ति, अमेरिका को दरकिनार कर चीन और रूस से बढ़ती उनकी नजदीकियों ने उन्हें सेना की आंखों किरकिरी बना दिया। तभी यह माना जाने लगा था कि अब उनकी सरकार ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है। हुआ भी बिलकुल वैसा ही। स्टैबलिशमेंट ने उनके साथ गठबंधन में शामिल और विपक्षों दलों के साथ मिलकर उनकी सरकार गिरा दी।
इमरान इसे कभी अमेरिकी साजिश तो कभी लंदन प्लान (नवाज शरीफ) का हिस्सा बताकर भावनात्मक रंग देने की भरपूर कोशिश की। शहबाज शरीफ की सरकार को उन्होंने इंपोर्टेड सरकार की संज्ञा दी। इसमें वह काफी हद तक कामियाब भी रहे। जनता को लगा कि पीडीएम सरकार उनपर थोपी गई है। अपने पक्ष में इस बने-बनाए इस माहौल का फायदा उठाने के लिए वह पहले से भंग चल रही पंजाब और खैबरपख्तूनख्वा असेंबलियों समेत देश में जल्द से जल्द आम चुनाव चाह रहे हैं। सत्ताधारी गठबंधन को इमरान की इस लोकप्रियता का कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा है और वह चुनावों से भाग रही है। वह इन दोनों रियासतों में राष्ट्रपति अलवी और सुप्रीम कोर्ट के जरिए चुनाव तिथियां निर्धारित करने के बावजूद पैसे और सेक्योरिटी की अनुपलब्धता का रोना रो कर चुनाव टाल रही है। इस दौरान उसकी भरसक कोशिश है कि इमरान खान को किसी तरह भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार करवा कर उन्हें अयोग्य ठहरा दिया जाए और बरसों के लिए जेल में डाल दिया जाए।
अभी तोशाखाना मामले में उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक ही रही थी कि अल-कादिर मामला आ टपका। ऐसी डेढ़ सौ ज्यादा एफआईआर उनपर दर्ज हो चुकी हैं। हालांकि अल-कादिर मामले में इमरान के पास अपने बचाव में कौम के नाम यूनिवर्सिटी बनवाने जैसी दलील है। ऐसे में वाकई इधर के पठान की तरह उधर के पठान की कामियाबी फिलहाल नजर नहीं आती है लेकिन हां अगले चुनाव तक वह सही-सलामत रहे तो सियासी बॉक्स ऑफिस पर धमाल जरूर मचाएंगे।

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