
Election Commission deletes 345 inactive political parties list after 6 years of inactivity – Shah Times
चुनाव आयोग ने 345 पंजीकृत दलों को सूची से हटाया, निष्क्रियता पर कार्रवाई
छह साल से चुनाव में भाग नहीं लेने वाले दलों पर गिरी गाज
चुनाव आयोग ने 345 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू की, 6 साल से निष्क्रिय दलों पर बड़ा फैसला।
नई दिल्ली (Shah Times):
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्षता और पारदर्शिता की रीढ़ मानी जाती है। इसी क्रम में अब आयोग ने उन राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है जो पंजीकृत तो हैं, लेकिन पिछले छह वर्षों में एक भी चुनाव नहीं लड़े। आयोग ने 345 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को पहचान कर उन्हें सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
निष्क्रियता का आधार और आंकड़े
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की अध्यक्षता में चुनाव आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी ने इन दलों की समीक्षा की। आयोग के अनुसार, देशभर में कुल 2800 से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल हैं, जिनमें से कई लंबे समय से न तो चुनाव लड़ रहे हैं और न ही किसी राजनीतिक गतिविधि में सक्रिय हैं।
“2019 के बाद से लोकसभा, विधानसभा या उपचुनाव में भाग न लेने वाले दल हटाए जा रहे हैं।” — निर्वाचन आयोग
प्रक्रिया और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उपाय
चुनाव आयोग का यह कदम किसी भी राजनीतिक पक्ष को अचानक बाहर करने की बजाय एक न्यायपूर्ण प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है। आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे संबंधित दलों को कारण बताओ नोटिस भेजें और सुनवाई का मौका दें।
➡️ इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी दल अनुचित तरीके से सूची से बाहर न हो जाए।
क्यों ज़रूरी है यह कार्रवाई?
- फर्जी रजिस्ट्रेशन पर रोक
कई बार निष्क्रिय दलों का इस्तेमाल काले धन के लेन-देन, टैक्स छूट और राजनीतिक फर्जीवाड़ों में किया जाता है। - डेमोक्रेसी को साफ़-सुथरा रखना
पंजीकृत लेकिन निष्क्रिय दल वोटर्स को भ्रमित करते हैं और बैलट/ईवीएम पर अतिरिक्त भार डालते हैं। - डेटा और पारदर्शिता सुधार
चुनावी व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए एक स्वच्छ डाटाबेस बनाना आवश्यक हो गया था।
पिछले उदाहरण और हाल की कड़ाई
इससे पहले भी आयोग ने कुछ सालों में हजारों निष्क्रिय दलों को हटाया था।
2019 में भी आयोग ने 550 से अधिक राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया था, जो न तो सक्रिय थे और न ही कार्यालय का कोई पता या गतिविधि उपलब्ध थी।
📎 आधिकारिक रिपोर्ट – चुनाव आयोग की कार्यवाही पर
भविष्य के लिए संकेत
इस कार्रवाई से यह स्पष्ट संकेत गया है कि आयोग अब राजनीतिक पारदर्शिता और सक्रियता को लेकर गंभीर है। आने वाले समय में इससे कई निष्क्रिय लेकिन पंजीकृत दलों पर और सख्ती हो सकती है।
क्या यह सिर्फ शुरुआत है?
विशेषज्ञों के अनुसार, यह तो केवल पहला चरण है। आने वाले महीनों में आयोग बाकी बचे दलों की भी समीक्षा कर सकता है। इस प्रक्रिया में टैक्स डिटेल्स, कार्यकर्ता संख्या, और फील्ड एक्टिविटी की भी जांच हो सकती है।
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राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
हालांकि अब तक किसी बड़े राजनीतिक दल ने इस पर सीधा विरोध नहीं किया है, लेकिन कुछ छोटे क्षेत्रीय दलों ने इसे “राजनीतिक संकुचन” की संज्ञा दी है।
“हमसे संपर्क नहीं किया गया, और सीधे नोटिस भेजा गया” – एक उत्तराखंड आधारित क्षेत्रीय पार्टी
निष्कर्ष
चुनाव आयोग का यह कदम भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता और सक्रियता बनाए रखने की दिशा में साहसिक निर्णय माना जा सकता है। निष्क्रिय राजनीतिक दलों को सूची से हटाना न केवल प्रणाली को साफ़ करता है, बल्कि नागरिकों का भरोसा भी मज़बूत करता है।
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