काबुल । तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से आतंकी संगठन आईएस-खुरासान को फिर हमलों को लेकर सक्रिय हो गया है। इसकी जीता जागता सबूत हाल के कुछ समय में अफगानिस्तान में हुए हमले हैं। आईएस-के लगातार आम आदमियों को निशाना बनाकर अपनी दहशत को फिर से कायम करने की कोशिश कर रहा है।
दक्षिण अफगानिस्तान की शिया मस्जिद में हुए हमले की जिम्मेदारी भी इसी संगठन ने ली है। बता दें कि जब तक अमेरिकी फौज अफगानिस्तान में थीं, तब तक आईएस किसी चूहे की भांति अपने बिल में छिपकर बैठा था। इस दौरान वो काफी सीमित भी हो गया था। लेकिन अमेरिकी फौज ही वापसी के साथ ही उसने हमले करने फिर से शुरू कर दिए।
तालिबान के लिए इन हमलों से निपटना काफी मुश्किल है। वहीं तालिबान की कमजोरी ही आईएस को मजबूती भी दे रही है। दरअसल, तालिबान के पास में न तो खुफिया नेटवर्क है और न ही वो तकनीक जिससे आईएस की मूवमेंट का पता लगाया जा सके। इसके अलावा कई दूसरी चीजों की भी कमी साफ दिखाई देती है। आईएस के राकेट हमलों को नाकाम बनाने के लिए तालिबान के पास भी कोई जरिया नहीं है। वहीं तालिबान ने आईएस से निपटने के लिए किसी भी दूसरे देश की मदद लेने से साफ इनकार कर दिया है।
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