नई दिल्ली । देश में सबसे पहले दिल का प्रत्यारोपण एम्स ने किया। फेफड़ा प्रत्यारोपण भी कार्डियक थोरेसिक सर्जरी विभाग के डाक्टर ही करते हैं, लेकिन एम्स को फेफड़ा प्रत्यारोपण शुरू करने में करीब 28 साल लगे जबकि तमिलनाडु और हैदराबाद के निजी अस्पतालों में फेफड़ा प्रत्यारोपण सामान्य बात हो गई है। अब एम्स शुरुआती दस मरीजों का फेफड़ा प्रत्यारोपण करेगा और इलाज का पूरा खर्च खुद उठाएगा। 30 वर्षीय महिला मरीज का निशुल्क प्रत्यारोपण किया गया है।
एम्स में फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए गठित टीम के सदस्य और कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. संदीप सेठ के अनुसार डा. रणदीप गुलेरिया के एम्स के निदेशक पद की कमान संभालने के बाद ही फेफड़ा प्रत्यारोपण शुरू करने की तैयारी शुरू हो गई थी। इसके लिए बजट भी निर्धारित किया गया और तय हुआ है कि दस मरीजों की निश्शुल्क प्रत्यारोपण होगा। उन्होंने बताया कि फेफड़ा प्रत्यारोपण में एक मरीज के इलाज पर करीब 30 लाख रुपये खर्च आता है। मरीज को दवा भी निश्शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी। अंगदान के चार घंटे में दिल का प्रत्यारोपण करना होता है, जबकि फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए छह घंटे का समय होता है।
डोनर और मरीज की लंबाई होनी चाहिए लगभग बराबर: डा. संदीप सेठ ने बताया कि फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए डोनर व मरीज का ब्लड ग्रुप एक होना जरूरी है। डोनर व मरीज की लंबाई (कद) का मिलान भी किया जाता है। प्रत्यारोपण के बाद पहले साल में संक्रमण का खतरा अधिक होता है। एक साल समय ठीक से निकल जाने पर दिल प्रत्यारोपण के मरीज औसतन 10 से 15 साल ठीक रहते हैं, वहीं फेफड़ा प्रत्यारोपण के मरीज पांच से 10 साल तक ठीक रह सकते हैं। इसके बाद दिक्कत आनी शुरू होती है। दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर भारत में अंगदान के प्रति जागरूकता कम होने से प्रत्यारोपण बहुत कम हो पा रहा है।
मोहन फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन के आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु में पांच साल में 419 और हैदराबाद में 132 लोगों में फेफड़ा प्रत्यारोपण हुआ है। जबकि दिल्ली में सिर्फ तीन प्रत्यारोपण हैं। पीजीआइ चंडीगढ़ में 2017 में पहला फेफड़ा प्रत्यारोपण हुआ था।
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