कहानी अफ्रीका के गुंजन गांव की है गुंजन गांव में मुख्य दो जातियां रहती थी, एक जाति मुलुलूलू जिसकी आबादी 10 प्रतिशत से कम थी, बाकी 90 प्रतिशत वहां हुलुलूलू जाति के लोग रहते थे, मूलूलूलू जाति के लोग कारोबारी तौर पर संपन्न थे लड़ाई झगड़े भी कर लिया करते थे, इस जाति के कुछ बच्चे छिछोरे भी थे, ऐसे छिछोरे बच्चों को उत्पात करते देख हुलुलूलू जाति की बच्चियां ऐसे छिछोरे बच्चों की तरफ अक्सर आकर्षित हो जाया करती थी यह बात झगड़े का विषय बनती थी, मगर 10 प्रतिश मुलुलूलू झगड़े से नहीं डरते थे और आखिरकार यह तू-तू, मैं-मैं चलती रहती थी।
एक दिन हुलुलूलू जाति का एक व्यक्ति सरदार बनकर इस गांव में पहुंचा। मजे की बात यह थी कि सरदारी तो उसे करनी नहीं आती थी, मगर उसको यह पता था कि इस गांव में हुलुलूलू जाति के लोग किस बात से दुखी हैं। उसने सरदार को कुछ ही दिन हो गए थे उसे एक मौका मिल गया तब उसने 10 प्रतिशत मुलुलूलू को सबक सिखाने की ठान ली और पिफर 10 प्रतिशत को ठोकठाक करके खूब सबक सिखाया गया। अब 10 प्रतिशत मुलुलूलू का मोरल डाउन हो चुका था और यह जाति अब दबे पांव गुजारा करने लगी थी। इस जाति के छिछोरे अब कम नजर आने लगे थे। हुलुलूलू जाति के लोग संतोष के सांस लेने लगे और दिन गुजरने लगे। गांव में फिर चुनाव हुआ पिफर से उसी को सरदार चुन लिया गया अब अगले पंचवर्षीय योजना में जब वक्त गुजरा तो लोगों ने देखा कि सरदार की कार्यप्रणाली उतनी अच्छी नहीं है जितनी वह चाहते थे आर्थिक घाटा बढ़ रहा है लोगों के कारोबार ठीक नहीं हैं और फिर वह पिछले सरदार से इस सरदार की तुलना करने लगे तो उन्होंने पाया कि पिछला सरदार ज्यादा बेहतर था आर्थिक मामलों में इससे ज्यादा उनके वक्त में तरक्की थी, मगर 90 प्रतिशत हुलुलूलू जाति के लोग 10 प्रतिशत मुलुलूलू जाति पर इतनी धमकियां मारपीट धूतकार फटकार कर चुके थे कि अब उन्हें यह डर सताने लगा था तो इसके बाद हम बुरी मुसीबत में पफस जाएंगे, उन्हें 10 प्रतिशत मुलुलूलू का भय इतना सताने लगा था कि वह अभी सरदार को किसी भी कीमत पर बदलना नहीं चाहते थे। 90 प्रतिशत हुलुलूलू के दिलों में 10 प्रतिशत मुलुलूलू का भय भयंकर रूप धरण कर चुका था यह है कुछ इस प्रकार था जैसे धर्मगुरु मृत्यु उपरांत दी जाने वाली यातनाओं का वर्णन करके नर्क से डरते हैं या अदृश्य शक्तियों को अपने कब्जे में दिखाकर कहते हैं कि अगर हमारे साथ पंगा लिया तो यह शक्तियां तुम्हारा विनाश कर देंगी। 90 प्रतिशत हुलुलूलू भयभीत इतने हो चुके थे कि उन्हें अपने कर्म याद आने लगे और जब उन्हें 10 प्रतिशत मुलुलूलू के साथ किए गए कर्म याद आए तो उनकी मजबूरी बन गया कि फिर उसी सरदार को रिपीट करें भले ही उनके घर के बर्तन क्यों ना बिक जाएं।
उनका भय उन्हें कह रहा था कि कम से कम मुलुलूलू के लोग उतनी ही बेरहमी से इन से बदला तो नहीं लेंगे जितना हुलुलूलू ने उनके साथ किया था। आधा ज्ञानी सरदार को यह ज्ञान दूर समंदर पार के किसी सलाहकार ने शोध पत्रों के साथ सौंपा था की एक बार भय कायम हो जाए तो पिफर यह कभी नहीं निकलता, क्योंकि सच बताने वाले लोग पहली बात तो पैदा होते नहीं दूसरी बात पैदा हो भी जाएं तो उनकी कोई सुनता नहीं। इसलिए वह दुनिया का वह कोहिनूर है जिसके बदले में दूसरा कोई ऐसा हीरा नहीं जिसकी ऐसी कीमत हो।
अब गुंजन गांव से यह भय का कोहिनूर पूरी अफ्रीका के जंगलों में पफैल चुका है और भारी तादाद के बिल्डरबीस्ट चंद छोटे-छोटे झुंडों से इतने भयभीत हैं कि पूरे अफ्रीका के जंगलों में उसी आधे ज्ञानी सरदार का राज हमेशा के लिए चाहिए, जिसने 10 प्रतिशत से भी कम गुंजन गांव के मुलुलूलू से हुलुलूलू को बचाने की भयलीला की थी, क्योंकि यहां भी कम लोगों को ज्यादा लोगों के झुंड ने इतना सताया कि अब उनमें भी यह है घर कर गया कि अगर यह सरदार ना आया तो उनका बुरा हाल हो जाएगा, और मैं भय के इस कोहिनूर को देखकर एक ऊंचे पेड़ पर बैठकर हंस रहा था।
~वाहिद नसीम
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