5 लाख असंगठित मजदूरों-गरीबों को मासिक 6 हजार की पेंशन
5 लाख का बीमा कवर,गरीब परिवार को 3 गैस सिलेन्डर
पूर्व सैनिकों को ऋण में 50 फीसदी गारंटी कवर
चेतन गुरुंग
देहरादून । लोगों के कल्याण और विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाली सत्तारूढ़ बीजेपी भी घोषणापत्र के बजाए आज दृष्टि पत्र ले आई। इससे पहले सत्ता में आने का ख्वाब लिए बैठी काँग्रेस भी प्रतिज्ञा पत्र लाई।
सवाल ये है कि आखिर इसकी वजह क्या ये है कि दोनों दल अच्छे से जानते हैं कि बोलना अलग बात है और उसको क्रियान्वित करना बेहद टेढ़ी खीर।
बीजेपी और काँग्रेस अवाम के सामने अगले 5 साल में क्या-क्या कर के दिखाएंगे, इसकी घोषणा तक करने से सहम और हिचक गई। ख़ासा लंबा इंतजार कराने के बाद वोटिंग से सिर्फ 5 दिन पहले बीजेपी भी आज महज दृष्टि पत्र लाने का हौसला ही दिखा सकी। दृष्टि पत्र में ऐसे-ऐसे नजरिये को शामिल किया गया है कि वे 5 साल में कुछ-कुछ भी पूरे होते हैं तो निश्चित रूप से बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हाथों इसे पेश किया गया। CM पुष्कर सिंह धामी ने पार्टी के दृष्टि पत्र को सम्पन्न,पलायन मुक्त, समृद्ध और विकास को अंतिम शख्स तक पहुंचाने वाला करार दिया।
ये माना जाता रहा है कि किसी भी राजनीतिक दल के घोषणापत्र पर यकीन करना पानी पर लकीर खींचने समान होता है। इसके बावजूद हर दल पूर्व में घोषणापत्र पेश कर चुनाव फतह करने के ईरादे से उतरते रहे हैं। भले चुनाव जीत के सरकार में आने के बाद अगले चुनाव में इस पर कोई भी दल कोई बात नहीं करते। इस बार उत्तराखंड में काँग्रेस के बाद बीजेपी भी ये साहस जुटा नहीं पाई कि सरकार में फिर आने पर अगले पाँच साल में वह क्या-क्या काम करेगी, इससे जुड़ी घोषणाएँ ही कर सके। प्रतिज्ञापत्र और दृष्टिपत्र सिर्फ शपथ और सोच को जाहिर करती हैं। ये पूरे न भी हो पाए तो अवाम उनसे घोषणाओं को ले के तकाजा नहीं कर पाएंगे।
BJP तो शायद सरकार में होने के कारण घोषणापत्र शब्द के इस्तेमाल से बची लेकिन काँग्रेस विपक्ष में पाँच साल रहने के बावजूद घोषणा तक नहीं कर पाई। दोनों दलों ने अपने-अपने कथित पत्र जारी करने के लिए पार्टी के दिग्गजों का सहारा लिया। काँग्रेस का प्रतिज्ञापत्र प्रियंका गांधी ने और बीजेपी का दृष्टि पत्र केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जारी किया। दोनों दलों का घोषणापत्र नाम से बचना और एक से एक बड़े-बड़े असंभव से दिखने वाले दावे करना, ये शंका अभी से पैदा करती है कि चुनाव जीतने के बाद उनको अपनी बातों पर खरे उतरने का विश्वास खुद उनको भी नहीं है।
दोनों दलों के पत्रों में शामिल वादों-ऐलानों को पूरा करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होगा। ये इस तरह किए गए हैं कि कौन सा इनको पूरा करना ही है। केंद्र सरकार भी उत्तराखंड को इतना पैसा दे पाएगी, इस पर शक है। बीजेपी का दृष्टि पत्र काँग्रेस के प्रतिज्ञापत्र से कहीं अधिक लुभावना और सुहावना दिखता है। बीजेपी का असंगठित क्षेत्र के 5 लाख मजदूरों व गरीबों को 6 हजार रूपये की मासिक पेंशन देना वाकई बहुत बड़ा ऐलान है। 5 लाख रूपये का गारंटी बीमा कवर भी उनको देने की बात की गई है।
किफ़ायती आवास योजना को पूरा करना आसान नहीं है। 5 लाख रोजगार का वादा हो सकता है कुछ हद तक पूरा हो जाए लेकिन प्रशिक्षित बेरोजगारों को हर महीने 3 हजार रूपये देना, हर न्याय पंचायत में सीबीएसई से मान्यता प्राप्त अटल स्कूल और ब्लॉक में डिग्री कॉलेज खोलना चुनौती से कम नहीं है। दृष्टि पत्र में शामिल शहरी क्षेत्रों के लिए 1 हजार इलेक्ट्रिक बसें,हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलना वाकई बहुत बड़ी और मुश्किल चुनौती है।
गरीब परिवारों को साल में 3 एलपीजी गैस सिलेन्डर देने का वादा भी बीजेपी ने दृष्टि पत्र में झलकाया है। लव जिहाद कानून को और सख्त बनाते हुए दोषी को 10 साल की सजा का प्रावधान करने के महत्वपूर्ण ऐलान भी किए गए हैं। बीजेपी-काँग्रेस अपने वादों और नजरिये पर आधा अमल भी कर लेते हैं तो बड़ी बात होगी।
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