आजादी से कुछ साल पहले चलते हैं और फिर आज तक का सफर तय करेंगे और फिर अगले 3 वर्ष! याद करें कि वह भी दौर था कि दुनिया में सेकेंड वर्ल्ड वाॅर चल रहा था, तब भारत की जनता में से चुनी गई दो फौजें अलग-अलग शक्तियों की ओर लड़ रही थी, जिसमें से एक फौज आजाद हिंद फौज के नाम से गठित की गई थी जिसका नेतृत्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे और यह फौज भारत को आजाद करने के लिए लड़ रही थी जिसे जर्मनी और जापान का समर्थन भी हासिल था। इस फौज के कमांडर यानि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जर्मनी और जापान प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की तरह महत्व देते थे और आजाद हिंद फौज भारत में अंग्रेज पफौज के खिलाफ लड़ते-लड़ते नागालैंड में प्रवेश कर गई थी।
दूसरी फौज वह थी जिन्हें ब्रिटिश भारतीय हुकूमत ने भारत में फौज बनाई थी और यह पफौजी ब्रिटेन की तरफ से जर्मनी और जापान के खिलाफ लड़ रहे थे, यहां तक कि भारत को आजाद करवाने वाली आजाद हिंद फौज के खिलाफ भी ब्रिटेन फौज में नोकरी करने वाले यह भारतीय फौजी ही लड़े थे! वक्त गुजरते-गुजरते सेकेंड वर्ल्ड वाॅर में रूस और ब्रिटेन के गठजोड़ जीत की तरफ बढ़ने लगे थे, तभी ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर यूनाइटेड नेशन नाम की एक वर्ल्ड सरकार के गठन का मंसूबा तैयार कर लिया था और इस पर काम चल रहा था कि ब्रिटेन और दूसरे व मालिकों के गुलाम देशों को आजाद करके वहां पर लोकतंत्र लाया जाएगा लोकतांत्रिक सरकार का गठन करके उनको पावर ट्रांसफर कर दी जाएगी। इस तमाम सूरत-ए-हाल को समझते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस ने भी अपनी एक्टिविटी देश की सेंट्रल पावर और सेंट्रल लोकप्रियता की पंचायत घोषित करना शुरू कर दिया था। सेकेंड वर्ल्ड वाॅर लंबे समय तक लंबा युद्ध लड़ते हुए रूस अपने आपको एक बड़ी ताकत साबित कर चुका था। अमेरिका भी करवट बदल रहा था तब से यह तय होना शुरू हो गया था कि जर्मनी जापान जैसे देशों को हराकर जब दुनिया में लोकतांत्रिक सरकारें बनाई जाएंगी तो उसमें एक बड़ा हिस्सा रूस को भी देना होगा, ताकि अभी तक ब्रिटेन के फ्रांस और पुर्तगाल के गुलाम रहे देशों को बाजार के रूप में स्थापित किया जा सके। इसका सीधा अर्थ निकलता था गुलाम देशों में जो बड़े देश हैं उनके दो टुकड़े किए जाएं या तीन टुकड़े किए जाएं, जिनमें से एक रूस के बाजार के रूप में स्थापित हो और दूसरा ब्रिटेन के बाजार के रूप में स्थापित हो यानि डिवाइडेशन के प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो चुका था। तब कांग्रेस ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया था और भारत में हिंदुस्तान पाकिस्तान की मांग उठने लगी थी। कांग्रेस में ही रहकर काम करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना एक पृथक देश की मांग की सुगबुगाहट में जो चुके थे, अब यहां से खेल शुरू होता है जहां हमें आकलन करना है उस वक्त की लीडरशिप पर किसने किसको गच्चा दिया।
1945 में हिरोशिमा, नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर लाखों सिविलियन को मौत के घाट उतारकर अमेरिका एक नई ताकत के रूप में अपने आपको स्टेबलिश कर चुका था। हिटलर मारा गया था नेताजी सुभाष चंद्र बोस क्योंकि सेकेंड वर्ल्ड वाॅर के मुजरिम के तौर पर उनकी तलाश थी लापता हो चुके थे और अब सामने था मुस्लिम लीग और कांग्रेस जिन्हें भारतवर्ष के भविष्य का फैसला करना था जोकि लाॅर्ड माउंटबेटन द्वारा बंटवारा एप्रूव हो चुका था। अब बंटवारे के लिए रेफरेंडम होना था और वोट कांग्रेस और मुस्लिम लीग को डाला जाना था, जिसके आधर पर हिंदुस्तान, पाकिस्तान का बंटवारा होना था, यह बंटवारा धर्म के आधार पर नहीं बल्कि वोट डालने के आधर पर होना था। अगर बंटवारा धर्म के आधार पर होता तो उस वक्त बहुत सी भारतीय रियासतों ने अपनी मजबूत हुकूमत समझकर रिफंड में हिस्सा ही नहीं लिया था, अगर बंटवारा हिंदू और मुसलमान के आधार पर होता तो उस वक्त की जनसंख्या के हिसाब से पाकिस्तान बहुत बड़ा देश होता। अगर सभी मुस्लिम पाकिस्तान का हिस्सा होते तो यकीनन आज जनसंख्या के हिसाब से भी भारत के आसपास ही होते। कांग्रेस के थिंकटैंक यह बात समझ चुके थे बंटवारा वोटों के हिसाब से होना चाहिए ना कि धर्म के हिसाब से और फिर मौलाना अबुल कलाम आजाद जिसे भारत के मुसलमान बहुत सम्मान देते थे और एक नेक मुसलमान समझते थे दूसरी तरफ मोहम्मद अली जिन्ना को इस्लामिक दृष्टि से इतना महत्व नहीं दिया जाता था। इसीलिए कांग्रेस ने मौलाना अबुल कलाम आजाद पर भावनात्मक अपील कराई कि कोई भी मुसलमान पाकिस्तान नहीं जाएगा और वोट कांग्रेस को देगा और मुसलमानों ने वोट कांग्रेस को दिया। इसीलिए एक छोटा सा पाकिस्तान बना, मगर यह बंटवारा हिंसक हो गया और यह इंसानियत नफरत में बदल गई।
~ वाहिद नसीम
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
क्रमश...
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