Khudiram Bose: भगवद गीता लेकर हंसते – हंसते फांसी को अपनाया

Khudiram bose

Report by – Anuradha Singh

देश(India) में हर तरफ आजादी का जश्न है देश के कोने-कोने में 15 अगस्त (15 August) को धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है लेकिन इस जश्न के पीछे का एक काला सच यह भी है की आज जिस आजादी के जश्न को हम धूमधाम से मना रहे हैं उसका अधिकार हमें दिलाने के लिए सैकड़ों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।

भारत (India)की आजादी के लिए न जाने कितने लोग फांसी पर चढ़ गए थे जिनमें से कुछ को इतिहास में याद रखा गया तो कुछ इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गए जिनमें से एक थे खुदीराम बोस (Khudiram Bose) महज 18 वर्ष की आयु में जहां उस दौर में युवा पढ़ाई करने के लिए देश के बाहर जाया करते थे वहीं इतनी कम उम्र में भगवत गीता हाथ में लेकर फांसी के फंदे पर झूल कर खुदीराम बोस (Khudiram Bose) ने अपने देश के लिए देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.

आजादी के इस शौर्य से भरे दिन में आइये याद करते है शौर्य से भरे इस युवा क्रांतिकारी को.

कैसे पड़ा नाम खुदीराम?

खुदीराम बोस(Khudiram Bose) जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था. अपनी पहली दोनों सन्तानों को खो चुके माता पिता ने अपने तीसरे पुत्र खुदीराम बोस (Khudiram Bose) को बचाने के लिए एक टोटका किया और उनकी बड़ी बहन ने चावल देकर खुदीराम (Khudiram Bose) को खरीद लिया. बंगाल में चावल को खुदी कहा जाता था, तो चावल के बदले खरीदे जाने के कारण उस दिन से इस महान क्रांतिकारी का नाम खुदीराम (Khudiram Bose) पड़ गया.अपने देश को आजाद कराने के लिए इस युवा के मन में ऐसी आग जागी की युवा ने 9वी कक्षा के बाद पढाई छोड़ दी और अपने युवा जज्बे के साथ कूद पड़े मुक्ति आंदोलन में स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए और वन्दे मातरम् पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

एक वर्ष में सीखा बम तैयार करने का तरीका

बोस को बम तैयार करने और उन्हें लगाने के अभ्यास में महारत हासिल करने में केवल एक वर्ष का समय लगा था।6 दिसंबर, 1907 उन महत्वपूर्ण तारीखों में से एक थी, जिसने बोस को गंभीर गतिविधियों में देखा वह बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन बम विस्फोट में शामिल थे.

Shah Times Dehradun  14   August 23 E-PAPER 

मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने की मिली ज़िम्मेदारी

1908 में खुदीराम बोस(Khudiram Bose) और प्रफुल्ल चंद्र चाकी को मुजफ्फरपुर के जिला मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने की ज़िम्मेदारी दी गई मगर, चीजें योजना के मुताबिक नहीं हुईं और कुछ समय बाद बोस को गिरफ्तार कर लिया गया वही उन्हे खबर मिली की उनके साथी प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने ब्रिटिश (British) कैद और अपमान से बचने के लिए आत्महत्या कर ली।

भगवद गीता लेकर हंसते – हंसते फांसी के फंदे को अपनाया

बम फेंकने के बाद पकड़े जाने पर मात्र 18 साल की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते – हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर इतिहास रच दिया.

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