हलद्वानी दंगा मामले के 50 आरोपियों की रिहाई के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में ज़मानत याचिकाओं पर बहस शुरू जमीयत उलमा-ए-हिंदके अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने नैनीताल जाकर बहस की
नई दिल्ली,(Shah Times) । हल्द्वानी दंगा मामले में पुलिस की पड़ताड़ना के शिकार बीस मुस्लिम युवकों की ज़मानत याचिकाओं पर कल उत्तराखंड हाईकोर्ट (नैनीताल) मैं सुनवाई हुई जिसके दौरान जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से बहस करते हुए सीनियर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने अदालत को बताया कि जाँच एजेंसी ने आरोपियों का उत्पीड़न करते हुए आरोपियों की गिरफ़्तारी के 28 दिनों के बाद उनके खिलाफ यूएपीए (अवैध गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) लगा दी ताकि आरोपियों को ज़मानत से वंचित किया जा सके और जाँच एजेंसी को जाँच करने के लिए अधिक समय मिल सके।
हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बैंच के जस्टिस पंकज पुरोहित और जस्टिस मनोज कुमार तिवारी को सीनीयर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने बताया कि सेशन कोर्ट ने आरोपियों की डीफाल्ट ज़मानत याचिका खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि लोक सभा चुनाव के कारण आरोपियों के खिलाफ समय पर चार्ज शीट दाखिल नहीं की जासकी इसलिए पुलिस को और समय देना असंवैधानिक नहीं है। नित्या रामकृष्णन ने अदालत को यह भी बताया कि सेशन कोर्ट का यह औचित्य असंवैधानिक और अनावश्यक है। कानून के अनुसार गिरफ़्तार किए गए आरोपियों के खिलाफ समय पर चार्ज शीट दाखिल करना ज़रूरी है वर्ना आरोपी डीफाल्ट ज़मानत के हक़दार होंगे। डीफाल्ट ज़मानत के लिए आरोपियों पर आरोप की गंभीरता का कोई महत्व नहीं है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्टों ने अपने फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया है कि डीफाल्ट ज़मानत आरोपी का संवैधानिक अधिकार है जिससे इस से वंचित नहीं किया जा सकता है।
एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि आरोपियों के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल किए जाने के बावजूद डीफाल्ट ज़मानत का अधिकार आरोपियों को मिलता रहेगा क्योंकि इस मुक़दमे में हाईकोर्ट में डीफाल्ट ज़मानत दाखिल करने के बाद पुलिस ने सेशन कोर्ट में चार्ज शीट दाखिल कर दी है। सीनीयर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने यह भी बताया कि जाँच एजैंसी ने 90 दिनों की अवधि पूरी होने के बाद अदालत में चार्ज शीट नहीं दाखिल की और आरोपियों और उनके वकीलों की जानकारी में लाए बिना अदालत से और 28 दिनों की मोहलत मांग ली जो कानून के अनुसार गलत है इसलिए क्रीमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 167 और यूएपीए कानून की धारा 43-डी(2) के अंतर्गत आरोपियों को डीफाल्ट ज़मानत के तहत जेल से रिहा किया जाना चाहिए। सुनवाई के बीच सीनीयर एडवोकेट ने अदालत को यह भी बताया कि पुलिस की पड़ताड़ना की हद हो गई है।
65 वर्षीय मुस्लिम महिला समेत अन्य सात महिलाओं को भी जेल में रखा गया है और उनके खिलाफ भी यूएपीए कानून लगा दिया गया है। नित्या रामाकृष्णन ने अदालत से आरोपियों की डीफाल्ट ज़मानत पर रिहाई की याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया जिस पर अदालत ने सरकारी वकील को आदेश दिया कि वह मुक़दमे की अगली सुनवाई पर बहस करें।
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बहस शुरू होने पर संतोष प्रकट करते हुए कहा कि हमारे वकीलों ने आज बहुत व्यापक और तर्कसंगत बहस की है। उन्होंने फ़ाज़िल अदालत को समझाने का हर संभव प्रयास किया कि इस मुक़दमे में पुलिस ने संवैधानिक सीमा का उल्लंघन करते हुए आरोपियों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया ताकि उनकी तुरंत ज़मानत संभव न हो सके। उन्होंने कहा कि 90 दिन की अवधि बीत जाने के बाद चार्ज शीट न दाखिल करना यह बताता है कि पुलिस और जाँच एजैंसी ने कानून की जगह घोर पक्षपात किया है।
उन्होंने इस बात पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि आरोपियों और उनके वकीलों की जानकारी में लाए बिना अदालत से और 28 दिनों की मोहलत मांग ली गई थी और अब चुनाव का बहाना बनाया जा रहा है। मौलाना मदनी ने कहा कि यह कोई पहला मामला नहीं है, मुसलमानों से जुड़े अक्सर मामलों में कुछ इसी प्रकार का व्यवहार अपनाया जाता है। निर्धारित अवधि बीत जाती है और चार्ज शीट दाखिल नहीं की जाती, उसकी वजह से आरोपियों की ज़मानत में विलंब होता है। उन्होंने कहा कि यह सब कुछ इसलिए किया जाता है ताकि आरोपी अपनी ज़मानत के लिए क़ानून का सहारा न ले सके। उन्होंने इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि आरोपियों में 65 वर्षीय मुस्लिम महिला समेत सात अन्य महिलाएं भी हैं, उन पर भी यूएपीए लगाया दिया गया है। यह पुलिस की क्रूरता और इसके पक्षपात का खुला सबूत है। दूसरी ओर पुलिस की अवैध फायरिंग से सात निर्दोष मारे गए, उनके बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं होती, मानो पुलिस और सरकार दोनों की नज़र में मानव जीवन का कोई मूल्य ही नहीं, हालांकि यह मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़ा हुआ एक गंभीर मामला है,और इस पर मानवाधिकार के लिए काम करने वाले लोग और संगठनों की चुप्पी भी एक बड़ा सवाल है।
मौलाना मदनी ने कहा कि यह अच्छी बात है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट की सीनीयर ऐडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने नैनीताल जाकर बहस की। हम आशा करते हैं कि जल्द ही सभी गिरफ़्तार लोगों की रिहाई का रास्ता साफ हो जाएगा।कांवड़ रूट पर स्थित दुकानों, होटलों और ढाबों पर मालिकों का नाम लिखने के राज्य सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के सम्बंध में मौलाना मदनी ने कहा कि हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। अदालत का यह फैसला नफ़रत पर धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और मुहब्बत की जीत है। हम आशा करते हैं कि हल्द्वानी मामले में भी उत्तराखंड हाईकोर्ट से हमें जल्द न्याय मिलेगा।
सीनियर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने आरोपियों गुलज़ार सरदार अहमद, रईस अहमद, अबदुलहमीद, मुहम्मद शाद, रईस अहमद, मुहम्मद फ़रीद, अबदुल हमीद, जावेद शरीफ, अब्दुलरज़ा, मुहम्मद इस्तकार, मुहम्मद अलताफ, मुज़म्मिल, मुहम्मद खलील, ज़ीशान, हाफिज़ शकील अहमद, माजिद मलिक, रेहान अशफाक़, अहमद हसन, मेहदी हसन, शाह रुख, महबूब, अरबाज़ इरफान, साहिल अंसारी, मतलूब अंसारी, हुकुम रज़ा, वाहिद रज़ा, आदि खान, परवेज खान, मुहम्मद आसिफ, मुहम्मद यूसुफ, शहाबुद्दीन, मुहम्मद याकूब, अज़ीम, मुहम्मद हुसैन की ज़मानत याचिकाओं पर बहस की जबकि 13 अगस्त को शेष तीस आरोपियों की ज़मानत याचिका पर बहस की जाएगी।
हाईकोर्ट में अब तक दो एफ.आई.आर. में गिरफ़्तार 50 आरोपियों की ज़मानत याचिका दाखिल की जा चुकी है।अदालत ने सभी याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। दो सदस्यीय बैंच ने डिपोटी ऐडवोकेट जनरल जे.एस. वरक को आदेश दिया कि वो 13 अगस्त को सुनवाई के लिए तैयार रहें। बचाव पक्ष के वकील की बहस के बाद उनकी आपत्तियों पर अदालत सुनवाई करेगी।
जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से सीनियर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन के साथ एडवोकेट शाहिद नदीम, एडवोकेट मुजाहिद अहमद, एडवोकेट सतोती राय, एडवोकेट नितिन तिवारी, एडवोकेट विजय पांडे, एडवोकेट आसिफ अली, एडवोकेट दानिश अली, एडवोकेट ज़मीर अहमद, एडवोकेट मुहम्मद अदनान, एडवोकेट सी.के. शर्मा व अन्य पेश हुए। सुनवाई के दौरान अदालत में आरोपियों के परिवार वालों के साथ मौलाना मुक़ीम कासमी (अध्यक्ष जमीयत उलमा ज़िला नैनीताल), मौलाना मुहम्मद क़ासिम (महासविच जमीयत उलमा ज़िला नैनीताल), मौलाना मुहम्मद आसिम (सिटी अध्यक्ष जमीयत उलमा हल्द्वानी), मौलाना मुहम्मद सलमान (सिटी माहासचिव जमीयत उलमा हल्द्वानी), डाक्टर अदनान, अब्दुल हसीब व अन्य मौजूद थे।