इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम की तरफ से कराए गए एक अध्ययन में दिल्ली के मुसलमान सबसे फिसड्डी पाए गए हैं
इसी रिपोर्ट के आंकड़े दिल्ली सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को भेजकर मुसलमानों के लिए ठोस काम करने की अपील की जाएगी
नई दिल्ली,(यूसुफ अंसारी )। इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम (Indian Muslim Intellectual Forum ) जल्दी ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को चिट्ठी भेजकर मुस्लिम समुदाय में शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की अपील करेगा। चिट्ठी का ड्राफ्ट लगभग तैयार है अगले हफ्ते यह ड्राफ्ट मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों और अधिकारियों को भेजे जाने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि हाल ही में इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम ने इंस्टिट्यूट ऑफ़ पॉलिसी एंड एडवोकेसी(Institute of Policy and Advocacy) के साथ मिलकर दिल्ली के मुसलमानों पर एक स्थिति रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा, रोजगार, सत्ता में हिस्सेदारी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में दिल्ली के मुसलमान बाकी अल्पसंख्यकों जैन, सिख और ईसाइयों के मुकाबले सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं। इस अध्ययन में सभी आंकड़े सरकारी स्रोतों से लिए गए हैं यह आंकड़े दिल्ली में मुसलमानों की दयनीय स्थिति पेश करते हैं। इस रिपोर्ट में मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने के सुझाव भी दिए गए हैं।
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फोरम इन आंकड़ों के आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को मुस्लिम समुदाय की समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव देगा। उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य मंत्री से निवेदन किया जाएगा कि मुस्लिम इलाकों में मोहल्ला क्लिनिकों की संख्या बढ़ाई जाए। शिक्षा मंत्री से मुस्लिम इलाकों में नए स्कूल खोलने का निवेदन किया जाएगा। इसी तरह सरकार की तरफ से चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं में भी मुसलमानों की उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की मांग की जाएगी।मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लिखी जाने वाली चिट्ठी में उन्हें मुस्लिम इलाकों में वक्फ बोर्ड की तरफ से 250 स्कूल खोले जाने का चुनाव से पहले किया गया वादा याद दिलाया जाएगा।
हाल ही में आई मुसलमानों की स्थिति पर रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम समाज में 15% बच्चों ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है। जबकि 45% बच्चे ऐसे हैं कि जिनका स्कूल एक बार छोटा तो दोबारा स्कूल नहीं गए। स्कूल छोड़ने वाले बच्चों में से एक चौथाई यानी 25% ने बताया है कि उनकी पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं है जबकि करीब 13% बच्चे अपने घरेलू कामकाज में व्यस्त हो गए हैं और बाकी 17% बच्चे छोटा-मोटा काम करके अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। करीब 11% बच्चों ने पढ़ाई के खर्चे पूरे ना कर पाने की वजह से स्कूल जाना छोड़ा है। अगर मुस्लिम इलाकों में सरकारी स्कूल खुलते हैं तो कम से कम पैसों की कमी की वजह से पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों का शिक्षा हासिल करने का सपना पूरा हो सकता है।
फोरम के अध्यक्ष कलीमुल हफीज कहते हैं कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों का यह मंच दिल्ली सरकार पर एक प्रेशर ग्रुप की तरह काम करेगा। पहले मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अधिकारियों को चिट्ठी लिखी जाएगी। उसके बाद मंच का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात करेगा। मंच की कोशिश है कि मुसलमानों की बदहाल स्थिति को सुधारने के लिए सरकारी स्तर पर जो काम हो सकते हैं उन्हें कराने के लिए सरकार को मजबूर किया जाए। इसके अलावा मुस्लिम समाज के अंदर से जो भी प्रयास इस हालत को सुधारने के लिए हो सकते हैं उनकी भी कोशिश की जाए।
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