
जन्म कुंडली में रोगों का विश्लेषण करते समय लग्न-लग्नेश, षष्ठ भाव और षष्ठेश की स्थितियों को भली-भांति जानना चाहिए। इनमें क्या राशि और नक्षत्र है और वह किस अंग और रोग का प्रतिनिधित्व करता है। इसी तरह इनके स्वामी ग्रहों की स्थिति अर्थात किस भाव, किस राशि व नक्षत्र में है स्वामी ग्रह हैं। यह पूर्ण जानकारी आपको जातक के रोग का विश्लेषण करने में सहयोग देगी।
कुंडली में षष्ठ भाव रोग भाव कहलाता है, इसलिए षष्ठेश को रोगेश भी कहते हैं। षष्ठ भाव पर काल पुरुष का पेट, आंत (बड़ी-छोटी) और गुर्दे आदि आते हैं जो सीधे-सीधे यह दर्शाता है कि जातक का खाना-पीना ही उसके रोगों का कारण है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण लग्न अर्थात प्रथम भाव है। प्रथम भाव जातक के पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। यदि किन्हीं कारणों से लग्न, लग्नेश-पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को जीवन भर रोगों का सामना करना पड़ेगा।
रोग की अवधि :
कुंडली में ग्रहों की पूर्ण स्थिति की जानकारी के बाद दशा-अंतर्दशा और गोचर का विचार करने से रोग के समय की जानकारी मिल जाती है। यदि लग्न कमजोर है, पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट है तो जातक को लग्नेश की दशा में अन्यथा षष्ठेश की दशा में रोग होने की संभावना रहती है। जब गोचर में लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट होता है तो इस समय भी रोग अपनी चरम सीमा पर रहता है।
ज्योतिष एवं वास्तु सलाहकार रजत सिंगल के अनुसार ज्योतिष शास्त्र एवं आयुर्वेद दोनों वेदों के अंग है जहां आयुर्वेद रोग का उपचार करने में सक्षम है वहीं ज्योतिष शास्त्र मानव शरीर में होने वाले रोगों की पूर्व जानकारी देने में सक्षम है। यदि रोग के कारणों की सही जानकारी हो, तो उपचार भी सही एवं सुचारू रूप से कर रोग मुक्त काया को प्राप्त करा जा सकता है।
कुछ सरल ज्योतिष उपाय जिन्हें करने से रोगों का निवारण होता हैं-
प्रत्येक पूर्णिमा को शिव मंदिर जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करें।
पीपल के वृक्ष की सेवा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है, रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर नियमित रूप से पीपल के वृक्ष पर मीठा जल अर्पित करें, इसके बाद रोग की निवृत्ति के लिए प्रार्थना करें, शीघ्र ही लाभ होगा।
लम्बे समय से रोग से ग्रस्त लोगों को हर माह कम से कम एक बार अपने सामर्थ्य अनुसार किसी अस्पताल में जाकर दवा और फलों का वितरण करना चाहिए, इससे रोगी और उसके पारिवारिक सदस्य निरोग रहेंगे|
काली हल्दी को मंगलवार और शनिवार के दिन या फिर अमावस्या के दिन बीमार व्यक्ति के सिर के ऊपर से सात बार वार कर इसे बहते जल में प्रवाहित करें, शीघ्र ही रोग से मुक्ति मिलेगी,
जटा वाले सात नारियल लेकर शुक्ल पक्ष के सोमवार के दिन ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए नदी में प्रवाहित करें, ऐसा करने से रोग से निवृति मिलती है।
तालाब, कूप या समुद्र में जहां मछलियाँ हो, उनको शुक्रवार से शुक्रवार तक आटे की गोलियां डालें, रोगी ठीक होता चला जायेगा।
एक रुपये का सिक्का रात को सिरहाने में रखकर सोएं और सुबह उठकर उसे किसी सुनसान जगह फेंक दें, अवसाद से मुक्ति मिलेगी और रात को नींद भी अच्छी आएगी।
कुछ व्यक्ति हर वस्तुओ का दान करने लग जाते है, जैसे कुत्तो को रोटी खिलाना, सूर्य को जल देना, शनि मंदिर में तेल चढ़ाना, गरीबो में आटा व अन्य खाद्य सामग्री बाटना इत्यादि। याद रहें जिस तरह बीमारी में दवाई डॉक्टर के परामर्श से लेना समझदारी है ठीक उसी तरह की दान कब और क्या करना चाहिए इसकी सलाह पहले किसी कुशल ज्योतिष से जरूर ले लेनी चाहिए अन्यथा किसी भी प्रकार के दान-पुण्य अनजाने में नुक्सान उठाना पड़ सकता है. ज्योतिषी रजत सिंगल अनुसार हमेशा कुंडली में अशुभ ग्रह से समबन्धित चीज़ो का दान करना चाहिए और अपने शुभ ग्रह से सम्बंधित चीज़ो का दान कभी नहीं करना चाहिए बल्कि उससे सम्बंधित वस्तुओ को अपने साथ रखना चाहिए। हर व्यक्ति को अपने जन्मदिन से पहले वार्षिक उपाय जरूर करने चाहिए, इससे ग्रहो की शांति होती है तथा आने वाले साल में रुकावटे काम आती है या में यह कह सकता हु की आपको रुकावटों से लड़ने के लिए मार्गदर्शन मिल जाता हैं।