नई दिल्ली ,(Shah Times ) । रेलवे की सबसे बड़ी यूनियन “नॉर्दन रेलवे मेंस यूनियन” की शाखा “दिल्ली सराय रोहिल्ला” ने आज दिनाक 8 मई को सिक लाइन “कोच केयर सेंटर ” मे गेट मीटिंग की गई, साथ ही स्टेशन पर भी स्टेशन के साथियों के साथ मीटिंग की, मीटिंग की अध्यक्षता शाखा अध्यक्ष सोनू यादव ने की एवम् संचालन शाखा सचिव राज कुमार ने किया! शाखा अध्यक्ष सोनू यादव ने सभी बताया कि बोनस की मांग को लेकर ये हड़ताल की गई थी, आज सभी रेल कर्मचारी1974 की रेलवे हड़ताल के आन्दोलनकारियों को नमन कर रहे है, 1974 की रेलवे हडताल को आजाद भारत की सबसे बड़ी घटना के रूप में याद किया जाता है। वैसे तो यह हडताल 8 मई 1974 के लिए तय की गयी थी लेकिन कॉम जोर्ज फर्नाडिस, कॉम उमरावमल पुरोहित और कॉम जे पी चौबे की गिरफ्तारी के बाद यह हडताल 02 मई को ही आरम्भ हो गई।
जार्ज फर्नांडीस उस समय “ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन” के अध्यक्ष थे। “ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन” और “नॉर्दन रेलवे मेंस यूनियन” ने श्री जार्ज फर्नाडीस के नेतृत्व में पहल कर देश के अन्य रेल कर्मचारियों के संगठनों को इकट्ठा कर राष्ट्रीय समन्वय समिति का गठन किया था और कई माह तक रेल कर्मचारियों के हड़ताल का मांग पत्र तैयार करने के बाद हड़ताल को संगठित करने का अभियान चलाया था। शाखा सचिव राज कुमार ने बताया “एनएफआईआर” ने इस हड़ताल का बहिष्कार किया था। यह रेल हड़ताल देश की एक ऐसी बेमिसाल हड़ताल थी जिसने समूचे देश के मजदूर आंदोलन और भारतीय राजनीति के ऊपर विशेष प्रभाव डाला था। इस हड़ताल के प्रमुख मुद्दों के अन्य मुद्दे के अलावा एक महत्वपूर्ण मुद्दा था – रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस। दरअसल इस हड़ताल से समूचे देश में और मजदूर जगत में एक बुनियादी बहस भी आरंभ हुई थी कि बोनस का सिद्दांत क्या हो ?
कुछ लोग और विशेषतः सत्ता पक्ष बोनस को मुनाफे के अंश के रूप में देखता था परन्तु “आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन” और “नॉर्दन रेलवे मेंस यूनियन” एक वाहिद ऐसा संगठन था जिसने बोनस को शेष वेतन या मजदूरी माना था।सर्वोच्च न्यायालय ने भी बाद में कहा था कि ’’बोनस इस द डेफर्ड वेज’’ और इसी सिंद्धांत के आधार पर रेल कर्मचारियों के संगठन ने बोनस की मांग की थी। “ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन” का कहना था कि उस समय के जो अस्थाई रेल कर्मचारी थे, उन्हे भी स्थाई किया जाये। सोनू यादव ने बताया “एआईआरएफ” का यह आंकलन था कि रेल कर्मचारियों की सारी मांगे पूरी करने पर भारत सरकार पर मुश्किल से 200 करोड़ का बोझ आयेगा। जबकि रेल हड़ताल को तोड़ने के उपर भारत सरकार ने इससे दस गुनी राशि अनुमानतः दो हजार करोड़ रूपये खर्च किये थे। शाखा सचिव ने बताया कि कॉम फर्नाडीस को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में रखा गया।
समूचे देश में रेल कर्मचारियों पर और उनके समर्थकों पर दमन चक्र शुरू कर दिया गया। कई लाख कर्मचारियों को नौकरी से मुक्त कर दिया और हजारों कर्मचारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। रेलवे कर्मचारियों को भयभीत करने के लिये और घुटना टेक कराने के लिये उनके आवासों को घेरा और रेलवे कालोनियों की बिजली काट दी गई। पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई तथा पुलिस के माध्यम से उन्हे व उनके बच्चों को मकान खाली करने को बाध्य किया गया। सैकड़ों कर्मचारियों के घरों का सामान सड़कों पर फेंक दिया गया।1974 की यह रेल हड़ताल न केवल देश की बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी हड़ताल थी, जिसने देश के सत्ता के खम्भों को हिला दिया था। आज इस हड़ताल को “50” वर्ष पुरे हो गए हैं। इन “50” वर्षों में अनेकों प्रकार के राजनैतिक बदलाव आये हैं परन्तु इस रेल हड़ताल ने जिन बुनियादी बातों को लेकर लकीर खींची थी, वे अब भी यथावत हैं। 1979 में स्व चरण सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने रेल मजदूरों के बोनस के सिद्धांत को स्वीकार किया और न्यूनतम बोनस देना आरंभ किया।