पुरातत्व विभाग के अभिलेख गोपीनाथ मंदिर को सातवीं सदी से लेकर नौवीं सदी का मंदिर बताते हैं
चमोली। उत्तराखंड के सबसे प्राचीनत्तम मंदिरों और विराट मंदिरों में एक चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर के एक हिस्से में खिसकाव और मंदिर के पत्थरों के हिलने की चर्चा ने सबका ध्यान आकृष्ट किया है।
गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Temple) के पुजारी हरीश भट्ट सहित अन्य पुजारियों ने गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Temple) के एक क्षेत्र में खिसकाव आने और मंदिर के अंदर वपानी टपकने पर चिंता प्रकट करते हुए पुरातत्व विभाग समेत सभी का ध्यान इस ओर ध्यान आकर्षित किया। मंदिर के अस्तित्व पर खतरे की चिंता प्रकट करते हुए गोपीनाथ गोपेश्वर के पुजारी हरीश भट्ट द्वारा चिंता जताई गई है। धर्म जगत से जुड़े लोगों का ध्यान और चिंता इस मामले पर बढ़ी है। मामले के संज्ञान में आने पर अधिकारियों ने भी मंदिर का बाहरी तौर सर्वेक्षण किया है।
दैनिक शाह टाइम्स के ई-पेपर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें
गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर (Gopeshwar Gopinath Temple) उत्तराखंड (Uttarakhand) का ही नहीं उत्तर भारत के सबसे प्राचीनत्तम मंदिरों में एक हैं । उत्तराखंड के सबसे विशाल मंदिरो में गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर है। पुरातत्व विभाग के अभिलेख इस मंदिर को सातवीं सदी से लेकर नौवीं सदी का मंदिर बताते हैं। कुछ शोधकर्ताओं और पुरातत्व वेत्ताओं और इतिहास कारों के अनुसार यह मंदिर तीसरी सदी में फिर से निर्मित हुआ। उससे पूर्व भी यहां पर मंदिर था ।
गोपीनाथ गोपेश्वर के इस मंदिर की ऊंचाई 65 फीट से अधिक है। नागर शैली का यह मंदिर कत्यूरी साम्राज्य के समय बना। ऐसा इतिहासकार मानते हैं। भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार डा यशवंत सिंह कटोच गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर को उत्तराखंड के प्राचीनतम मंदिरों में एक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण , पुरातत्व और इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर बताते हैं।
भगवान शिव के मंदिरों में से सबसे प्राचीन मंदिर है गोपेश्वर गोपीनाथ का शिव मंदिर । मंदिर के गर्भ गृह में भगवान भोलेनाथ गोपीनाथ का दिब्य और पवित्र शिव लिंग साक्षात शिव स्वरूप है। पंडित मोहन प्रसाद भगवान गोपीनाथ के स्वरूप को साक्षात शिव बताते हैं।
गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर को प्राचीन मंदिर निर्माण शैली में शिखर, गीर्वा, स्कंध , जंघा और पाद रूप में देखा जाता है। वर्तमान में इस मंदिर के स्कंध भाग के सूप नासिका क्षेत्र के खिसकने की बात सामने आयी है। मंदिर के अंदर विगत कई वर्षों से जरा सी बरसात में निरंतर पानी टपकने की शिकायत और चिंता से पुजारी लोग और धर्म जगत से जुड़े लोग पुरातत्व विभाग को अवगत करा चुके हैं। पुरातत्व विभाग वर्तमान में मंदिर के परिसर समेत अन्य क्षेत्र में मरम्मत कार्य भी कर रहा है।