डॉ उदित राज
हिंदू कौन हैं? कब और कैसे हिंदू बन जाते हैं और कब नही। इतना अंतर्विरोध शायद संसार में कहीं और होगा! इंसान एक मिनट के लिए हिंदू बन जाता और पल में ही जाति के चारदीवारी में फिर क़ैद कर दिया जाता है। जनतंत्र की ताकत क्या क्या न करा दे, न चाहते हुए गले लगाना पड़ता है। इसके पूर्व जन्म से स्थान निश्चित हुआ करता तो कोई परेशानी नहीं होती थी। जब दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और महिलाओं को अधिकार देने बात आती है तब हिंदू नहीं होते और वोट लेने का समय सबको हिंदू बना दिया जाता है। कितना झूठ और कृत्रिम व्यवस्था का निर्माण हो जाता है और जैसे ही भागीदारी और बराबरी की बात आती, पल में बिखर जाता है ।
6 अप्रैल 23 को राहुल गांधी जी ने कोलार से बोला कि ‘जितनी आबादी उतना हक़’ तब जो सबको हिंदू बनाने की बात करते थे, उनका मुँह सिल गया। विरोध कर नही सकते थे क्योंकि वोट नही मिलेगा। सबको भागीदारी मिले तो कौन सा मुसलमान या ईसाई को लाभ मिल रहा है। फ़ायदा तो हिंदू का होना हैं। यहीं पर चालाकी और धूर्तता पकड़ में आ जाती है। वास्तव में इनका हिंदू धर्म में आस्था होती तो जो बात राहुल गांधी ने कहा, बीजेपी के नेताओं को करनी चाहिए थी। बीजेपी की परीक्षा भी थी इसी में। कोलार से राहुल गांधी जी ने बोला था कि क्या चोर मोदी होते हैं? बीजेपी नेता , जो पिछड़ा वर्ग, से नहीं थे मुक़दमा कर दिया कि पिछड़ों का अपमान किया गया। राहुल गांधी को सजा भी हो गई। जब उसी जगह से जितनी आबादी उतना हक़ की बात करी तो सन्नाटा छा गया। अगर तनिक सा भी पिछड़ों को हिंदू मानते तो इन्हें न केवल ख़ुश होना चाहिए था बल्कि आगे बढ़कर स्वागत करना था।यही तो मौका था पिछड़ों को हिंदू बनाने का।
थोड़ा अतीत में जाकर देखें कि दलितों और पिछड़ों को किसने हिंदू होने से रोका। हिंदू अगर है तो जन्म से लेकर मरने तक होना चाहिए। वरना कुछ घंटों और दिनों के लिये कोई हो सकता है। जब जब पिछड़ों और दलितों को अधिकार इनको मिले क्या कोई मुसलमान या ईसाई ने विरोध किया? मण्डल कमीशन की सिफारिशें लागू करने के लिए जब वी पी सिंह की सरकार ने आदेश जारी किया, देश में कोहराम मचा दिया। ये कौन लोग थे? बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापिस ले लिया और लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में कमंडल यात्रा पूरे देश में निकाला। कथित पिछड़े वर्ग से नरेंद्र मोदी सारथी बने। त्रासदी देखो कि जिस पिछड़ों के आरक्षण का विरोध किया उन्हें हिंदू बनाकर वोट लिया। पिछड़ों में चेतना के अभाव का खूब लाभ उठाया और अभी भी कर रहे हैं। तर्क दिया कि अगर पिछड़ों को आगे लाना है तो सीधे नौकरी में नहीं देना चाहिए बल्कि शिक्षा में दें ताकि योग्य बने।
2006 में जब मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने पिछड़ों को मेडिकल और इंजीनियरिंग में आरक्षण दिया तो फिर विरोध किया। लेकिन परोक्ष रूप से ज़्यादा। दिल्ली के आल इंडिया आयुर्विज्ञान के प्रांगण को आरक्षण विरोध में अखाड़ा बना दिया। पूरी मीडिया ने ऐसा डेरा डाला कि मानो कि धरती फट जायेगी और जैसे की प्रलय का समय आ गया हो। सवर्ण इंजीनियर और डॉक्टर अपनी डिग्री जलाने लगे और आत्महत्या की धमकी दे डाले। बड़े मुश्किल से धरना तब उठा जब मनमोहन सिंह की सरकार ने एक नया फार्मूला निकाला कि आरक्षण तो पिछड़ों को दिया जायेगा परन्तु वर्तमान सीटें प्रभावित नही होंगी। सवर्ण समाज को हिंदू धर्म में आस्था होती तो स्वागत करते ! पिछड़े भी महसूस करते कि वो भी हिंदू हैं?
छत्तीसगढ़ और झारखंड में आरक्षण की सीमा वहाँ की सरकारों ने बढ़ा दिया लेकिन बीजेपी के राज्यपाल फाइल रोक कर बैठे हैं। छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार ने 76% का आरक्षण देने का फ़ैसला किया है लेकिन राज्यपाल ने रोक दिया? अब सवाल बनता है बीजेपी से पूछने का कि क्या ये लाभ मुसलमान या ईसाई लेने जा रहे थे? जाति जनगणना का समर्थन करें तो पता लगेगा कि सभी को हिंदू मानते हैं। बजरंग दल प्रतिबंध लगाने की बात कर्नाटक में हुई तो मौक़े का फ़ायदा उठाकर सबको हिंदू बनाने में लग गये।हालाँकि राज्य सरकार प्रतिबंध लगा भी नहीं सकती और यह भी कहा अगर जो नफ़रत फैलाता है या तोड़ फोड़ करता है उस पर पाबंदी लगेगी चाहे वाई पीएफ़आई हो या कोई और। मिला मौक़ा प्रधानमंत्री से लेकर सब कूद गये दलित और पिछड़ों समाज को हिंदू बनाने में । राहुल गांधी ने जब भागेदारी देने की बात कही तो कहा ग़ायब हो गये थे?
बजरंग दल की स्थापना विनय कटियार, जो पिछड़े वर्ग से आते हैं , कहाँ ग़ायब हो गये । बुनियाद तो उन लोगों ने डाली लेकिन फ़ायदा लेनें की बात आई तो गायब कर दिया । बाहर से लोगों को लाकर सांसद और मंत्री बना दिये क्या जिन पिछड़ों ने खून पसीना बुरे समय में बहाया था आज वो कहाँ हैं? मतलब निकल गया पहचानते नही । राम जन्मभूमि ट्रस्ट में विनय कटियार और उमा भारती जैसों को प्रबंधन समिति में सदस्य बना सकते थे। माना कि पूजा पाठ कराने का अधिकार ब्राह्मण का है लेकिन प्रबंधन में तो लिया जा सकता था। जब भागेदारी देने की बात आई तो हिंदू न रहे।
बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने पर बड़ा हंगामा खड़ा हो हुआ है।
जन्तर मंतर पर बैठे पहलवानों को न्याय दिलाने के समय बजरंग दल कहा था? लाखों किसान हक़ के लिए आंदोलन किये, करोड़ों युवा बेरोज़गार हैं, महंगाई आसमान छू रही हैं, बैंक पूँजीपतियों ने लुटा, लाखों लोग कोरोना में तड़प-तड़प कर मरे, रसोई गैस की बढ़ी क़ीमत , डीज़ल-पेट्रोल के दाम बढ़े, दलित-आदिवासी के साथ अन्याय आदि क्या क्याँ बजरंग दल कुछ बोला। क्या ये हिंदुओं की समस्या नही है? बीजेपी को वोट दिलानी के लिए बजरंग दल मैदान में होता हैं। हिन्दू लड़के और लड़कियों को मारते हैं और होटल-रेस्टोरेंट में तोड़ फोड़ करते हैं तो किसको क्षति पहुँचाते हैं? क्या वो हिंदू नही हैं?
चेतना के अभाव में दलितों और पिछड़ों को डराकर भ्रमित करते हैं। पूर्व जन्म के किए गये पाप का दर दिखाकर भेड़ की तरह हांकते रहते हैं लेकिन अब लोग जग गये हैं और पहले की तुलना में बड़ा फ़र्क़ पड़ गया है। भूत और भविष्य का डर और लोभ दिखाकर मूर्ख बनाया जाता है। दलित और पिछड़े वर्तमान की चिंता छोड़कर भविष्य संभालने में लग जाते हैं। सत्ता में भागीदारी और सम्मान से भी बड़ा स्वर्ग का सपना दिखाकर वोट लेने का कारोबार बहुत दिनों तक नही चलने वाला है। जो लोग बजरंग बली और बजरंग दल को एक समान रूप से पेश कर रहे हैं भला वो किसको बख्शने वाले हैं? आस्था के नाम पर वोट माँगना क्या दर्शाता है कि ये ख़ुद स्वर्ग में नहीं जाना चाहते हैं और दलित पिछड़ों को भेजना चाहते हैं। खुद वोट लेकर राज़ करेंगे और पिछड़ों को भड़कायेंगे कि बजरंग बली पर ताला लगाना चाहते हैं। मान लेते हैं कि कांग्रेस ने आस्था पर चोट किया हालाँकि ऐसा नहीं है तो इनको क्यों चिंता है? जो जैसा करेगा वैसा भरेगा? बजरंगबली ख़ुद खबर लेंगे लोगों की। मोदी जी बजरंग बली के नाम से कर्नाटक में वोट माँगा तो क्या इनकी आस्था है? ये बजरंगबली का उपयोग सत्ता के लिए करें नाम दें आस्था का। पिछडों और दलितों को समझना होगा इस खेल को।
(लेखक पूर्व लोकसभा सदस्य, कांग्रेस से जुड़े ‘संगठन असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस’ और अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिषद के चेयरमैन हैं। लेख में व्यक्त विचार इनके निजी हैं।)