HomeEditorialकांग्रेस ने कर्नाटक को जीत लिया, अभी कई इम्तिहान बाकी हैं

कांग्रेस ने कर्नाटक को जीत लिया, अभी कई इम्तिहान बाकी हैं

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यूसुफ अंसारी

कर्नाटक (Karnataka) का चुनावी रण कांग्रेस(Congress) ने जीत लिया है। दमदार तरीके से जीता है। बीजेपी हारी है। बुरी तरह हारी है। कांग्रेस की इस जीत का सेहरा किसके सिर बांधा जाए और बीजेपी की हार का ठीकरा किसके सिर्फ थोड़ा जाए इसे लेकर बहस चल रही है। जरा कांग्रेस में जीत का सेहरा राहुल गांधी के सिर बांधने की कोशिश हो रही है तो बीजेपी में हार का ठीकरा प्रधानमंत्री के सामने फूटे इसकी पूरी कोशिश हो रहे हैं मतदान के बाद बीजेपी को शादी सहार का एहसास था इसीलिए तमाम टीवी चैनलों पर मोदी का चेहरा हटाकर जेपी नड्डा का चेहरा आगे कर दिया गया था हार का ठीकरा बीजेपी अध्यक्ष फिर हटा के सिर खोला जा रहा है।

क्या रहे चुनाव परिणाम ?
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक का विधानसभा चुनाव पहला सेमीफाइनल का दर्जा रखता है। इसी साल के आखिर में 4 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन चार राज्यों के विधानसभा चुनाव अगले लोकसभा चुनाव की तस्वीर साफ करेंगे। नाटक के चुनावी नतीजों का विश्लेषण करके यह समझा जाए कि कौन किस पर कितना भारी रहा। 224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में कांग्रेस ने 136 सीटें जीत कर दमदार तरीके से सत्ता में वापसी की है। उसे 43% वोट मिले हैं। बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले आधी से भी कम सिर्फ 65 सीटें मिली हैं। बीजेपी को 36% वोट मिला है। पिछले कई चुनावों से किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमार स्वामी की पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर सिमट कर रह गई। पार्टी को 13.3% वोट मिले हैं। इस बार उनके किंगमेकर बनने का सपना चकनाचूर होकर रह गया है।

क्या मुद्दे हावी रहे ?
कर्नाटक के चुनाव में स्थानीय और जमीनी मुद्दे हावी रहे। कांग्रेस ने बहुत पहले से बीजेपी सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरा। बीजेपी के मुख्यमंत्री पर 40% कमीशन लेने का आरोप लगाया। जगह-जगह उसके पोस्टर लगाए। बीजेपी ने मुद्दे से भागने की बहुत कोशिश की। लेकिन कांग्रेस ने उसे भागने नहीं दिया। इससे पहले कह रहा जो मैं कांग्रेस में बिखराव नजर आता था। लेकिन इस बार कांग्रेस एकजुट नजर आई‌। बिखराव बीजेपी में नजर आया। बीजेपी के कई बड़े दिग्गज नेता यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने भी बीजेपी छोड़ कांग्रेस का दामन थामा। इसे लेकर कांग्रेस की आलोचना भी हुई। कभी भी हो रही है। बीजेपी के नेताओं को लेकर कांग्रेस ने यह नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि कर्नाटक में सत्ता विरोधी लहर इतनी हावी है बीजेपी के बड़े नेताओं को भी हार का डर सता रहा है‌‌। कांग्रेस ने कर्नाटक का विधानसभा चुनाव बीजेपी के तौर तरीकों से लड़कर उसे चुनावी मैदान में पटकनी दी।

नहीं हो पाया ध्रुवीकरण

हर चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश में माहिर बीजेपी ने इस चुनाव में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तक ने आखरी वक्त तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की। लेकिन इस बार वह काम नहीं कामयाब नहीं हुए। चुनाव से पहले कर्नाटक सरकार ने ओबीसी आरक्षण में मुस्लिम ओबीसी जातियों का 4% आरक्षण खत्म करके अपने कोर वोटर को यह संदेश देने की कोशिश की कि उसने मुसलमानों का आरक्षण खत्म कर दिया है। हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर हो रही बयानबाजी को लेकर तल्ख टिप्पणी भी की है। बीजेपी का यह मुद्दा नहीं चला। हर चुनाव में राम को स्टार प्रचारक बनाकर घूमने वाली बीजेपी इस बार बजरंगबली यानि हनुमान को लेकर आई। लेकिन इससे भी बीजेपी की दाल नहीं गली। पिछले 2 साल से कर्नाटक में हिजाब, लव जेहाद और हलाल गोश्त के नाम पर संप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें हो रही थी। लेकिन जनता इन मुद्दों के झांसे में नहीं आई। प्रॉपर बीच रिलीज हुई ‘द केरल स्टोरी’ भी बीजेपी के काम नहीं आ सकी‌।

क्या संदेश है कर्नाटक चुनाव के नतीजों का ?
कर्नाटक चुनाव के नतीजों का सबसे बड़ा संदेश यह है कि बीजेपी पीएम मोदी और अमित शाह की तिकड़ी अजेय नहीं है। अगर बेहतर चुनावी रणनीति और मैनेजमेंट के साथ चुनाव मैदान में उतरा जाए तो इन्हें हराया जा सकता है। यह संदेश पहली बार नहीं आया है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कम से कम 5 बार यह संदेश मिला है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद साल भर के भीतर ही दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को बुरी तरह हराया था। उसी साल बिहार के चुनाव में बीजेपी लालू नीतीश के गठबंधन से बुरी तरह हारी थी। 2017 के गुजरात के राज्यसभा चुनाव में मोदी और अमित शाह की जोड़ी लाख कोशिशों के बावजूद भी अहमद पटेल कौन किसी पर नहीं हरा पाई थी। 2021 में पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी ममता बनर्जी को बीजेपी सत्ता से नहीं उखाड़ पाए पिछले साल दिसंबर में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने बीजेपी को हराया था। तब कहा गया कि हिमाचल प्रदेश में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार बनाने की परंपरा को ही निभाया है। लेकिन कर्नाटक में बीजेपी की हार का बड़ा राजनीतिक संदेश है। चुनाव में पीएम मोदी के विजय रथ को रोक दिया है।

कितनी गंभीर है कांग्रेस ?
कांग्रेस ने कर्नाटक में जिस जुझारूपन का परिचय दिया है, अगर कांग्रेस इस साल के आखिर में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी उसी तरह मजबूती से डटी रहती है तो अगले लोकसभा चुनाव में वह जीत की भूमिका लिख सकती है। कभी नेहरू ने कहा था ‘आराम हराम है।’ कांग्रेस को इसी सूत्र वाक्य को याद रख कर अगले विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट जाना है। अभी तक विधानसभा चुनावों को गंभीरता से नहीं लेने वाली कांग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव को गंभीरता से लेकर दिख रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कर्नाटक में चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद राहुल गांधी राजस्थान जाकर कार्यकर्ताओं से चुनावी चर्चा करते दिखे हैं। यह पीएम मोदी और अमित शाह का स्टाइल है राहुल गांधी समझ गए हैं कि मोदी शादी जोड़ी को उन्हीं के स्टाइल में काम करके हराया जा सकता है। राहुल गांधी और उनकी टीम फिलहाल तो काफी गंभीर नजर आ रही है यह गंभीरता कितने दिन बनी रहती है आने वाला वक्त बताएगा।

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इसी साल नवंबर-दिसंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2018 में कांग्रेस ने बीजेपी से राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ सत्ता छीन ली थी बाद में मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोटस के तहत बीजेपी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर करके अपनी सरकार बना ली थी ऐसे में कांग्रेस के सामने पिछले चुनाव में जीते हुए राजस्थान और छत्तीसगढ़ को बचाने की चुनौती है। साथ में मध्य प्रदेश को बीजेपी से वापस छीनने की चुनौती है। तेलंगाना में कांग्रेस की बुरी हालत है। वहां भी कांग्रेस को भारतीय राष्ट्रीय समिति से लोहा लेना है। अगर इन चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी और बीआरएस को पटखनी दे देती है तो उसे लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती का मजबूत आधार मिल जाएगा। 2024 में सत्ता की मजबूत दावेदारी पेश करने के लिए कांग्रेस को इस कड़े इम्तिहान से से गुजरना होगा।

राजस्थान में एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार बनने का बरसों पुराना सिलसिला चला रहा है। इस बार भी वहां बीजेपी की सरकार बनने की उम्मीद ज्यादा दिख रही है। क्योंकि कांग्रेस में आपसी गुटबाजी चरम पर है। मध्यप्रदेश में हालात कर्नाटक की तरह हैं। कांग्रेस कर्नाटक की तर्ज पर मध्य प्रदेश में जीत दर्ज कर सकती है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बंपर बहुमत पिछले चुनाव में मिला था इस जनादेश को अपने पक्ष में बनाए रखना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। अगर कांग्रेस इन चुनौतियों से पार पा लेती है तो लोकसभा चुनाव में विपक्ष की निर्विवाद भरी बन सकती है अभी तक कांग्रेस के साथ आने से हिस्स रहे दल भी उसके पीछे खड़े हो सकते हैं। तभी उन्हें भरोसा होगा कि कांग्रेस ही बीजेपी से देशभर में लड़ रही है।

(लेखक शाह टाइम्स के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक हैं। लेख में व्यक्त विचार इनके निजी हैं।)

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