चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। चीन और ताइवान के बीच यह विवाद 73 सालों से चल रहा है।
New Delhi, (Shah Times)। चीन ने शुक्रवार को ताइवान की वकालत करने वाले लोगों को मौत की सजा का एलान कर दिया है। हालांकि चीन की इस धमकी को बेअसर माना जा रहा है क्योंकि ताइवान की आजादी की मांग चीन में नहीं होती है। ये मांगे ताइवान में होती हैं जहां चीनी अदालत के नियम नहीं चलते।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह धमकी तब प्रकाशित की गई है जब चीनी अदालतों का द्वीप क्षेत्र पर अधिकार नहीं है। बीजिंग ने कहा है कि ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते, जिन्होंने पिछले महीने पदभार संभाला था, वह एक “अलगाववादी” हैं और उनके उद्घाटन के तुरंत बाद, चीनी अधिकारियों ने सैन्य अभ्यास किया।
चीनी मीडिया द्वारा बताया कि नए दिशानिर्देशों के अनुसार, चीन की अदालतों, अभियोजकों और सुरक्षा संस्थानों को अलगाव को उकसाने के लिए ताइवान के अलगाववादियों को कड़ी सजा देनी चाहिए, साथ ही राष्ट्रीय संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता की दृढ़ता से रक्षा करनी चाहिए।
आपको बता दें कि चीन ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। चीन और ताइवान के बीच ये झगड़ा 73 साल से चला आ रहा है। दरअसल, चीन के साथ ताइवान के बीच पहला कनेक्शन 1683 में हुआ था। तब ताइवान क्विंग राजवंश के अधीन हुआ था।अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ताइवान की भूमिका 1894-95 में पहले चीन- जापान युद्ध के दौरान सामने आई।
दरअसल जापान ने क्विंग राजवंश को हराकर ताइवान को अपना उपनिवेश बना लिया था। इस हार के बाद चीन कई भागों में बिखर गया। कुछ साल बाद चीन के बड़े नेता सुन्-यात-त्सेन ने चीन को एकजुट करने के उद्देश्य से 1912 में कुओ मिंगतांग पार्टी बनाई। हालांकि उनका रिपब्लिक ऑफ चाइना का अभियान पूरी तरह सफल हो पाता उससे पहले ही 1925 में उनकी की मृत्यु हो गई थी।
इसके बाद कुओ मिंगतांग पार्टी के दो टुकड़े हो गए। नेशनलिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी। नेशनलिस्ट पार्टी जनता को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देने के पक्ष में थी, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी डिक्टेटरशिप में भरोसा रखती थी। इसी बात पर चीन के भीतर गृहयुद्ध शुरू हुआ। 1927 में दोनों पार्टियों के बीच नरसंहार की नौबत आ गई। शंघाई शहर में हजारों लोगों को मार गिराया गया। यह गृह युद्ध 1927 से 1950 तक चला।