नई दिल्ली (Shah Times): आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम हर काम को जल्दी से जल्दी करने की सोचते हैं। टेक्नोलॉजी हमारे ऊपर इस कदर हावी हो गई है कि हम जो काम पहले घंटे में होता था वह अब कुछ ही मिनटों में हो जाता है। ऐसा ही खाना बनाने का काम है जिसमें काफी समय लगता है, लेकिन अब पैकेज्ड फूड कुछ ही समय में बनकर तैयार हो जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं आप अपना समय बचाने के लिए अपनी सेहत के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं। क्योंकि डिब्बा बंद खाना हमारी सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
आज के टाइम में पैकेटबंद खाद्य पदार्थ का चलन फलता-फूलता उद्योग बन चुका है। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि एक दशक में आसानी से तैयार हो जाने वाले पैकेटबंद फूड के बाजार में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही कूड़ेदान में प्लास्टिक का इज़ाफ़ा भी बढ़ रहा है। बाकि बची हुई कसर ढाबों में प्रयोग किए जाने वाले प्लास्टिक के रेडीमेड बर्तनों ने पूरी कर दी है।
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है डिब्बाबंद खाना
पैकेटबंद खाने के सामानों के साथ ढेर सारे आशंकाएं भी जुड़ी हुई है। जानकारों के मुताबिक इन में बहुत ज्यादा सोडियम यानी नमक की मात्रा होती है। साथ ही बड़ी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स, फ्रूटोज और ट्रांसफैट जैसे तत्वों की भी मौजूदगी होती है। ऐसे ज्यादातर उत्पादों में सेहत के लिए जरूरी विटा¨मस विशेष रूप से विटामिन बी1 और विटामिन सी व मिनरल्स की कमी होती है। ऐसे खाद्य पदार्थो को तैयार करने की प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है कि इनके पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं। प्रिजरवेटिव्स और रंग की मिलावट के कारण आजकल समय से पहले अधेड़ दिखने की समस्या तेजी से हावी हो रही है, वहीं कैंसर जैसे घातक बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है।
बच्चों के नूडल्स में भी नहीं मिलते पोषक तत्व
जानकारों का मानना है कि ऐसे खाद्य पदार्थ में संतुलित भोजन होने की आशा नहीं की जा सकती। इनमें प्रोटीन, विटामिन, फाइबर और खनिज जैसे तत्व भी नहीं पाए जाते। इसीलिए बच्चों की आंत में इनके चिपकने की संभावना बढ़ जाती है। इस कारण पेट की समस्या भी हो सकती है।
पैकेट बंद खाना स्वास्थ्य के लिए कैसे होता है हानिकारक
* पैकेट बंद खाने में नमक की इतनी अधिक मात्रा होती है कि लगातार इनका सेवन करने वालों को हाइपरटैंशन का खतरा बन जाता है। गर्भवती महिलाओं के लिए ऐसा होना खतरनाक साबित हो सकता है।
* ऐसे खाद्य पदार्थों को हाइड्रोजेनेटेड या आंशिक तौर पर हाइड्रोजेनेटेड तेल में तैयार किया जाता है। आमतौर पर इनमें कैलोरी की मात्रा सामान्य से अधिक होती है। इस कैलोरी को खाद्य विशेषज्ञ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं।
* इन में मौजूद ट्रांसफैट की मात्रा सेहत के लिए हानिकारक होती है। यह ट्रांसफैट हाइड्रोजन गैस और तेल के मिश्रण से तैयार होता है। हालांकि प्राकृतिक रूप से यह ट्रांसफैट मांसाहार और दुग्ध उत्पाद में पाया जाता है। यह कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है। इस से मोटापे के खतरे के साथ धमनियों में चरबी जमने की आशंका होती है।
* पैकेट बंद नूडल्स और सूप में काफी मात्रा में स्टार्च और नमक की मौजूदगी होती है। इस के अलावा मोनोसोडियम ग्लुटैमेट (एमएसजी) मात्रा मौजूद होती है।
* पैकेट बंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता छह माह से लेकर एक वर्ष तक बरकरार रखने के लिए इनमें प्रिजरवेटिव्स मिलाए जाते हैं। इसके कारण इनमें से एक विशेष गंध महसूस की जाती है।
जानकारी का अभाव
बाजार का खाना और पैकेट बंद खाद्य पदार्थ में घर में बनाए जाने वाले भोजन के मुकाबले पौष्टिक तत्वों की कमी होती है। खासकर ढाबों में भोजन बनाने की प्रक्रिया से बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। पेचिस, अल्सर, लीवर और आंत में संक्रमण का खतरा बना रहता है। बच्चों के मामले में उनका शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है।
पैकेट में बंद खाद्य सामग्री के इस्तेमाल में एक बड़ी परेशानी यह भी है कि ज्यादातर कंपनियां इस बात का खुलासा करने से बचती हैं कि पैकेट बंद खाने में कितनी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि ऐसे तत्वों के इस्तेमाल के लिए एक मानक तय कर दिया गया है, वहीं संबंधित कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन जागरूकता की कमी कानून के लागू होने की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक ज्यादातर उत्पादों में मोनोसोडियम ग्लुटैमेट या एमएसजी होता है, लेकिन सूची में इन का जिक्र अजीनोमोटो के रूप में या नेचुरल फ्लेवर के तौर किया जाता है। जो हमारी सेहत पर पूरा प्रभाव डालता है और हम धीरे-धीरे बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।